11 अक्तूबर 2011

जब सूकून ही लुप्त हो, क्या कर लेंगी मस्तियाँ

मैं-मेरा-मुझको-मुझे, ये ही राग सुना रहा।
जिस को सुनिएगा वही, अपने ढ़ोल बजा रहा।

कुछ अच्छा तो कुछ बुरा, यही जगत का सार है।
किस को हम मानें सही, किसे कहें बेकार है।१।


परिवर्तन के नाम पर, समय सभी को छल रहा।
चहरों पर मुस्कान पर, ज़िगर सभी का जल रहा।।

मातु-पिता से दूर हो, भटकें लड़के-लड़कियाँ।
जब सूकून ही लुप्त हो, क्या कर लेंगी मस्तियाँ।२।


उल्लाला छन्द

मात्रिक छन्द
चार चरण वाला छन्द
प्रत्येक चरण में दो हिस्से
हर हिस्से में १३ मात्रा, यूं प्रत्येक चरण में १३+१३=२६ मात्रा

उल्लाला छन्द के कुछ और भी भेद होते हैं

छप्पय छन्द में अक्सर १५+१३=२८ मात्रा  वाले छप्पय के दो चरण देखे गए हैं

5 टिप्‍पणियां:

  1. कल 14/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. सुकून ही लुप्त हो जाए फिर सब व्यर्थ है!
    सुंदर प्रस्तुति!

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  3. सुन्दर छंद...
    महत्त्वपूर्ण जानकारी...
    सादर...

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  4. बहुत सुन्दर ज्ञान वर्धक सुन्दर छंद युक्त...

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