17 जून 2011

चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - मैंने कहा पति हूँ मैं, कोई चपड़ासी नहीं

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन


आप लोगों के सक्रिय सहयोग के कारण अब इस घनाक्षरी वाले आयोजन में विशेष पंक्ति पर कम से कम 4 प्रस्तुतियों के साथ 14 से अधिक सरस्वती पुत्रों / पुत्रियों के छन्द पढ़ने का अवसर मिलना तय है| मंच आगे भी प्रयास करता रहेगा ताकि रचनाधर्मी अपना सर्वोत्तम लोकार्पित करें| आज की पोस्ट में हम मिलते हैं तीन नए सदस्यों से|




चितचोर बना मोर, पंख फैला थिरकता
रंगों की छटा बिखेर, मन में समाया है |


तेरा ये मधुर स्वर ,कानों में गूंजती धुन
जब स्वर पास आया, और पास लाया है|


अदभुत रूप तेरा, आकर्षित करता है
अपने जादू से तूने सबको लुभाया है|


मृदु मुसकान भरी, ऐसी प्यारी छवि तेरी
देख तेरी सुंदरता, चाँद भी लजाया है||

[आदरणीया निर्मला जी के लिए प्रयुक्त करने वाले शब्द ही इनके लिए भी प्रयुक्त
करूंगा - आशा जी आप ने इस उम्र में घनाक्षरी सीखने का जो बीड़ा उठाया
उस के लिए आप के जीवट को प्रणाम| सच सीखने की कोई भी उम्र नहीं
होती| चितचोर बना मोर ............. अदभुत रूप तेरा............
मृदु मुसकान ............. वाह क्या शब्द संयोजन किए हैं
आपने, वाह, आनंद आ गया|]









राग से ही राज आवे, रार को ना राम भावे
सार सार बात यही, खार को मिटाइए।
पत्‍नी को जलाए पति, रति में ही गति रहे
यति कैसे घर आए, मति को जगाइए।
बहु बोले सास अब, बेटे से तो आस नहीं
मैं तो चली काम पर, घर को सम्‍भालिए।
भाई भाई लड़ रहे, राई राई बंट रहे
राज‍नीति का अखाड़ा, घर ना बनाइए।

[कमाल है अजित जी पहली बार में ही इतना सुंदर छन्द| भाई लोग सँभल जाइए,
अब बहनें आ गई हैं ज़ोर शोर से| अजित जी, 'रति-गति-मति' में आपने
अनुप्रास का बहुत ही सुंदर प्रयोग किया है| इस के अलावा, बेटे से तो
आस नहीं - ऐसी पंक्ति कोई नारी शक्ति ही ला सकती थी|
सुंदर नहीं - बहुत सुंदर छन्द|]








सुबह के आठ बजे, बीवी की आवाज़ सुनी,
गर साँस ले रहे तो, अब उठ जाइए.

नौकर की छुट्टी आज, झाड़ू पोंछे जैसे काज,
मुझको आवे है लाज, आप निपटाइए,

मैंने कहा पति हूँ मैं, कोई चपड़ासी नहीं,
आप ऐसा मुझपे न, हुकम चलाइए.

सुबह उठते ही क्यों, बेलन दिखाती मुझे,
राजनीति का अखाड़ा, घर ना बनाइए.

[ये हमारे फेसबुक वाले मित्र हैं| पैरोडियों के माध्यम से लोगों को अक्सर गुदगुदाते
रहते हैं| उसी क्रम में इन्होंने, नीतिगत वाली पंक्ति पर हास्य प्रस्तुति दे दी है| क्या
करें भाई, भाभीजी के बेलन जी का चमत्कार जो है| इन्होंने औडियो क्लिप भी
भेजी थी, पर वो मुझसे अपलोड नहीं हो पायी| आइये हम इन के दुख में इन
को ढाढ़स बँधाते हैं, बाकी और क्या कर सकते हैं हम और आप :) ]


आज की इस पोस्ट से दो बातें सिद्ध हुईं, पहली तो ये कि यदि हम बहाने बनाना छोड़ कर कुछ करने की ठानें तो अवश्य कर सकते हैं और दूसरी ये कि घनाक्षरी [कवित्त] वाकई ऐसा जादुई छन्द है जो जाने अनजाने में अनुप्रास अलंकार ले ही आता है|

आइये हम सभी मंच पर इन तीनों सदस्यों का स्वागत और उत्साह वर्धन करें|

अब लगता है हफ्ते में दो से ज्यादा पोस्ट्स लगानी चाहिए| फिर मिलते हैं, जल्द ही अगली पोस्ट के साथ|


जय माँ शारदे!

23 टिप्‍पणियां:

  1. आपने अच्छी जानकारी दी है। शुक्रिया !
    एक जानकारी हम भी दे रहे हैं कि
    सच्चा गणेश कौन है ? Real Ganesh

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  2. चेहरे तो नये नये आप ने दिखाये हमें
    नया जैसा लिखता हो ऐसा कवि लाईये।
    तीनों की ही रचनायें, उम्‍दा मिसाल हैं जी
    जोश सारे मिलकर इनका बढ़ाईये।
    नये नये शब्‍द लाये, घटनायें नयी नयी
    ऐसे कवियों को आप, नया न बताईये।
    जोश है उमंग है, घनाक्षरी में छाय रहा
    आपकी सफ़लता का उत्‍सव मनाईये।

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  3. आशा जी और सुशील जी दोनों की ही रचनाएं बहुत श्रेष्‍ठ हैं। सुशील जी की रचना ने तो बहुत ही गुदगुदाया। समस्‍या पूर्ति के लिए दिए गए तीनों पंक्तियों पर छंद लिखने का मन था लेकिन एक पंक्ति पर ही छंद लिखा गया। लेकिन आपकी इस कक्षा से घनाक्षरी छंद लिखना आ गया। यह सत्‍य है कि बिना लिखे आप छंद को समझ नहीं सकते। केवल पढ़ लेने से और उसका सांचा समझने से कुछ नहीं होता। जब लिखने बैठते हैं तभी अभ्‍यास होता है। नवीन जी आपका आभार। इसी प्रकार हमें नवीन छंदों से अभ्‍यास कराते रहें।

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  4. आद. तिलक भाई साब के लिए सादर:-

    कवित्त की बात है तो सुनो भाई साब आप
    धैर्य अब टूट रहा चलो मान जाइए

    साहित्य की सेवा हेतु सभी से रिक्वेस्ट है कि
    थोड़ा एडजस्ट कर मस्तियाँ लुटाइए

    दूर दूर खड़े खड़े, कॉज़ दे के बड़े बड़े,
    आप यूं ही पड़े पड़े बातें न बनाइये

    आप की आवाज सुनी तभी से है इंतज़ार
    आप अपना भी छन्द ले के शीघ्र आइये :)

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  5. Naveen ji ... Aapka blog mujhe behad bhata hai... samuchit gyaan ganga saa .. Ajeet ji kee rachna bahut pasand aayi..Nirmala ji kee dhnakshri myoor kee sundarta par aur Sushil Joshi ji kee hasy vinod se bhari Dhanaakshri gudguti hai.. Sadar

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  6. एक घनाक्षरी:

    एक सुर में गाइए.....

    संजीव 'सलिल'

    *

    नया या पुराना कौन?, कोई भी रहे न मौन,

    करके अछूती बात, दिल को छू जाइए.

    छंद है 'सलिल'-धार, अभिव्यक्ति दें निखार,

    शब्दों से कर सिंगार, रचना सजाइए..

    भाव, बिम्ब, लय, रस, अलंकार पञ्चतत्व,

    हो विदेह देह ऐसी, कविता सुनाइए.

    रसखान रसनिधि, रसलीन करें जग,

    आरती सरस्वती की, एक सुर में गाइए..

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  7. सुबह जो पत्नी जी, हमको उठाने आई,
    मने कहा प्राण प्यारी , हमें ना उठाइए!
    थेला साथ लिए हाथ, मुझको हिला के बोली,
    जाके जरा सब्जी, खरीद कोई लाइए,
    मैंने कहा पति हूँ मैं, कोई चपड़ासी नहीं,
    मुझको घरेलु काम मैं ना उलझाइये,
    पटक के पांव मेरी प्राण प्यारी बोली मोहे,
    परमेश्वर मेरे ऐसी बातें ना बनाइये,
    मैंने तो दासी चरणों की आप के हे ईश मेरे
    हो जो परमेश्वर तो स्वर्ग को जाइये,
    वरना उठाओ थेला सब्जी खरीद लावो
    मेरी सोयी काली आत्मा को ना जगाइए!

    Prithwipal Rawat

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  8. तीनों रचनाकारों ने बहुत सुन्दर घनाक्षरी छंद लिखा है .....

    कार्यशाला चलती रहे ,हार्दिक कामना है |

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  9. आज की रचनाएँ देख कर मन और उत्साहित हुआ है अजीत गुप्ता जी और सुशील जी को मेरी ओर से बधाई |मुझे तो बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है इस मंच से |नवीन जी मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

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  10. कमाल की घनाक्षरियाँ लिखी हैं आशा जी ने और अजित जी ने। सुशील जी ने तो हास्य रस से इस आयोजन को और सरस बना दिया है। ऊपर से तिलकराज जी, नवीन भाई और आचार्य जी छंदों पर छंद दागे जा रहे हैं। आप सबको बहुत बहुत बधाई।

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  11. बहुत गज़ब!! बार बार हिम्मत जुटाते हैं और आप ऐसे ऐसे उम्दा मिसाल दे जाते हैं कि हिम्मत ही जबाब दे जाती है.....


    मगर कोशिश तो करेंगे ही...

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  12. आशा दीदी , अजीत जी तथा सुशील जी की बेहतरीन रचनाओं ने बहुत उत्साहित किया है ! तीनों का हृदय से अभिनन्दन करना चाहती हूँ ! बहुत सुन्दर रचनाये हैं ! भई वाह !

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  13. विशिष्ट शैली की अपनी पहचान का यह छंद ,पुरातनता के साथ ,नित ,नव मोहक रस का पान कराता है ,आदरणीय साधकों ने ,बहुत सधे अंदाज में ,कथ्यों केसाथ शब्दों का चयन किया है ,जो भव्य बन पड़ा है .../
    बहुत - २ धन्यवाद /

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  14. कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 18 दिनों से ब्लॉग से दूर था
    इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !

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  15. आशा जी, अजित जी और सुशील जी की रचनाएं प्रशंसनीय हैं।
    तीनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  16. गर साँस ले रहे तो, अब उठ जाइए.

    हा हा हा

    अच्छा हुआ इन लाजवाब अनुभवों से दूर हूँ

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए कविगण को हार्दिक बधाई

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  17. kshma..yaha par Asha ji kee post badne ke baad Nirmala ji ka naam likh diya..Asha ji kee myoor ki sundarta par dhanaakshri bahut sundar hai..

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  18. आप सभी बंधुगणों का आपके स्नेहिल शब्दों के लिए हृदय से आभार एवं नवीन जी का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ.... एक विशेष घनाक्षरी छंद नवीन भाई एवं आप सभी गुणीजनों को समर्पित है:

    सुंदर सुशील और, ज्ञानी हैं नवीन भाई,
    ब्लॉग इनका ये देखो, कैसा ज़ोरदार है.
    बड़े-बड़े कवियों का, जमावड़ा लगा यहाँ,
    भिन्न-भिन्न रचनाएँ, होती हर बार है.
    नई तरकीब मिले, शिक्षाप्रद सीख मिले,
    जो भी इक बार आया, हुआ बेड़ापार है.
    सभी कवियों को मेरा, मन ये नमन करे,
    नवीन भाई का मेरे, दिल से आभार है.

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