अवधी गजल - धरा धीर सूरज निकरबइ करे - राजमूर्ति 'सौरभ'

 


धरा धीर सूरज निकरबइ करे

दुखे कइ ई रतिया गुजरबइ करे

हँसत फूल ई मुरझुराये कबउ

जे पइदा भवा बा ऊ मरबइ करे

 

ऊ नेता बना बा त पक्का अहइ

उ वादा से अपने मुकरबइ करे

 

तू झूठइ त चोरी लगावत अहा

गलत बाति कहब्या अखरबइ करे

 

खुद अपनइ ऊ तारीफ झोंके अहइ

जे हलुकार बाटइ उछरबइ करे

 

बढ़त रहब्या आगे त मंजिल मिले

समुन्दर म नदिया उतरबइ करे

 

लफंगन के साथे म बिगड़ा बा ऊ

मिले नीक संगति सुधरबइ करे

2 टिप्‍पणियां:

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