दो पाटन के बीच...
वो औरतें जो जबरदस्ती
घर में घुस आयीं घुसपैठियों
की तरह
" मैं तुलसी तेरे आंगन
की तर्ज पर "
उन औरतों को सबसे मिली
उपेक्षा
उनका दावा था इस उपेक्षा की चादर को
ढांक देंगी सेवा और प्रेम के
बेलबूटों से
और खत्म कर दीं पूरा जीवन
नफरत की
चादर में रफू करते -करते
पहली औरत भी सौतिया- डाह में
"मेरा पति मेरा देवता
है "कह
बार-बार जाने खुद को विश्वास
दिलाती है
और दूसरी को नीचा दिखाती है
भावनाओं की रणनीति के रेशमी-
फंदों
में गांठ मारती रहीं समाज
-बच्चे -घर की
दुहाई दे देकर
और आंचल फैला -फैला कर
बटोरती रहीं अपनी आहों और
उनकी उपेक्षाओं को
इन दोनों की लानत -मलानत के
बीच
" दो पाटन के बीच बाकी
बचा न कोय "
कहने वालों की दबी हंसी पर
अट्टहास लगाता मर्द जब अपनी मर्दानगी की
पीठ पर गर्व से हाथ फिराता
है
"दो बिल्लियों को लड़ा
बंदर कैसे मजा मारता है "
कह जब दायीं आंख अश्लीलता से
दबाता है
सच मानना
हर बार ईश्वर की शर्म से
झुकी हुई गर्दन पर
अनैतिकता के पहाड़ से लुढ़क
कर एक
बड़ा सा पत्थर देवता की
रीढ़ पर सरक जाता है
...संध्या यादव
सुधियों का रंग श्याम -श्वेत ही होता है...
धन्यवाद साहित्यम
जवाब देंहटाएंसुधि श्रोता वर्ग श्रेष्ठतम कविताओं के प्रकाशन के लिए आप का सदैव आभार व्यक्त करेगा !.......आदरणीया सन्ध्या जी की कविताएं भी ,कविताओं के इस कठिन समय में ,आप के माध्यम से श्रेष्ठता की सहज उपलब्धता है !......पुनः धन्यवाद "साहित्यम"
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