सुनो ऐ हमनवा मेरी
तिजारत का ज़माना है
यहाँ हर ख़ास दिन ब्यौपार का
इक आम हिस्सा है
वगरना इस ज़माने में
मोहब्बत कौन करता है
ट्विटर पर अपना अपना राग
अपनी अपनी डफ़ली है
रहा इक फेसबुक
तो है यहाँ हर चीज़ मस्नूई
सभी जज़्बात मस्नूई
हर इक तजवीज़ मस्नूई
सुनो ऐ हमनवा
ये वो ज़माना है
जहाँ व्हाट्सऐप के रिश्ते
सगे रिश्तों पे भारी हैं
यहाँ इक घर में रहने वालों
में बातें नहीं होतीं
यहाँ बस शेयर होता है
यहाँ बस पोस्ट होती है
बग़ल के कमरे में बिस्तर पे
माँ बीमार लेटी है
कि बूढ़ा बाप मलिकुल मौत का
है मुंतज़िर
ये सब ग़िज़ा है फेसबुक की
यहाँ अब लाइक की खेती भी
होती है
तिजारत का ज़माना है
यहाँ इंसानियत इक लंबी गहरी
नींद सोती है
हमनवा - दोस्त, तिजारत – व्यापार, मस्नूई – नकली, जज़्बात – भावनाएँ, तजवीज़ – राय, मलिकुल मौत – मौत का फरिश्ता, मुंतज़िर – प्रतीक्षारत,
ग़िज़ा – भोजन
बहुत बढ़िया
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