ख़ुद
भले ही झेली हो त्रासदी पहाड़ों ने ।
बस्तियों
को दी लेकिन हर ख़ुशी पहाड़ों ने ॥
ख़ुद
तो जी अज़ल ही से तिश्नगी पहाड़ों ने ।
सागरों
को दी लेकिन हर नदी पहाड़ों ने ॥
आदमी
को बख़्शी है ज़िंदगी पहाड़ों ने ।
आदमी
से पायी है बेबसी पहाड़ों ने ॥
मौसमों
से टकरा कर हर कदम पै दी यारो ।
जीने
के इरादों को पुख़्तगी पहाड़ों ने ॥
देख
हौसला इनका और शक्ति सहने की ।
टूट
कर उचट कर भी उफ़ न की पहाड़ों ने ॥
विश
स्वयं पिये सारे नीलकण्ठ शैली में ।
पर
हवा को बख़्शी है ताज़गी पहाड़ों ने ॥
बादलों
के आवारा कारवाँ के गर्जन को ।
बारिशों
सी बख़्शी है नग़मगी पहाड़ों ने ॥
त्याग
और तपस्या से योगियों की भाषा में ।
ज़िन्दगी
की बदली है वर्तनी पहाड़ों ने ॥
सबको
देते आये हैं नेमतें अज़ल से ये ।
‘द्विज’ को भी सिखायी है शायरी पहाड़ों ने ॥
द्विजेन्द्र
‘द्विज’
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 26 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह ! बहुत ही उम्दा, आदरणीय.
जवाब देंहटाएंमैं सौरभ, सौरभ पाण्डेय
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंत्याग और तपस्या से योगियों की भाषा में ।
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की बदली है वर्तनी पहाड़ों ने ॥
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खूबसूरत ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंBadi hi khoobsurat gajlen likhi hai aapne, thanks,
जवाब देंहटाएंZee Talwara
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