24 अक्तूबर 2021

मिरे क़दमों में दुनिया के ख़ज़ाने हैं उठा लूँ क्या - असलम राशिद

 


मिरे क़दमों में दुनिया के ख़ज़ाने हैं उठा लूँ क्या ।

ज़माना गिर चुका जितना मैं ख़ुद को भी गिरा लूँ क्या ॥

 

तिरा चेहरा बनाने की जसारत कर रहा हूँ मैं ।

लहू आँखों से उतरा है तो रंगों में मिला लूँ क्या ॥

 

सुना है आज बस्ती से मुसाफ़िर बन के गुज़रोगे ।

अगर निकलो इधर से तो मैं अपना घर सजा लूँ क्या ॥

 

भरा हो दिल हसद से तो नज़र कुछ भी नहीं आता ।

मैं नफ़रत में अदावत में मोहब्बत को मिला लूँ क्या ॥

 

कि बरसों से तो गिन गिन कर मैं इन को ख़र्च करता हूँ ।

अभी भी चंद साँसें हैं तिरी ख़ातिर बचा लूँ क्या ॥

 

असलम राशिद

1 टिप्पणी:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया नवीन भाई, साहित्यम का भी बहुत शुक्रिया 🙏🏻🙏🏻🌹🌹🌹

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