मैं अपने होठों की ताज़गी को तुम्हारे होठों के नाम लिख दूँ - रमेश प्रसाद कँवल


 

मैं अपने होठों की ताज़गी को तुम्हारे होठों के नाम लिख दूँ । 

हिना से रौशन हथेलियों पर नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ ॥

 

अगर इजाज़त हो जानेमन तो किताबे-दिल के हर इक वरक़ पर ।

मैं सुबहे-काशी की रौशनी में अवध की मस्तानी शाम लिख दूँ ॥

 

बदन पै सावन की है इबारत नज़र में दौनों की एक चाहत ।

मेरे लबों को जो हो इजाज़त वफ़ा का पहला सलाम लिख दूँ ॥

 

जो दिलनशीं है सितम पै माइल उसे हर इक पल दुआएँ दूँ मैं ।

सुलगते सूरज से दूर रखकर अमन-सुकूँ का क़याम लिख दूँ ॥

 

मसर्रतों पै गहन प्रदूषण अवामी ख़ुशियाँ बिलख रही हैं ।

तुम्हीं बताओ ऐ मेरे रहबर कहाँ से बेहतर निज़ाम लिख दूँ ॥

 

डिलीट कर दूँगा उसके ग़म को मैं दिल के अब लैपटॉप से ही ।

ख़ुशी के जितने मिले हैं DATA उन्हें मैं दिलबर के नाम लिख दूँ ॥

 

रमेश प्रसाद कँवल

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