मैं अपने होठों की ताज़गी को तुम्हारे होठों के नाम लिख दूँ ।
हिना
से रौशन हथेलियों पर नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ ॥
अगर
इजाज़त हो जानेमन तो किताबे-दिल के हर इक वरक़ पर ।
मैं
सुबहे-काशी की रौशनी में अवध की मस्तानी शाम लिख दूँ ॥
बदन
पै सावन की है इबारत नज़र में दौनों की एक चाहत ।
मेरे लबों को जो हो इजाज़त वफ़ा का पहला सलाम लिख दूँ ॥
जो
दिलनशीं है सितम पै माइल उसे हर इक पल दुआएँ दूँ मैं ।
सुलगते
सूरज से दूर रखकर अमन-सुकूँ का क़याम लिख दूँ ॥
मसर्रतों
पै गहन प्रदूषण अवामी ख़ुशियाँ बिलख रही हैं ।
तुम्हीं
बताओ ऐ मेरे रहबर कहाँ से बेहतर निज़ाम लिख दूँ ॥
डिलीट
कर दूँगा उसके ग़म को मैं दिल के अब लैपटॉप से ही ।
ख़ुशी
के जितने मिले हैं DATA उन्हें मैं दिलबर के नाम लिख दूँ ॥
रमेश
प्रसाद कँवल
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना रविवार २४ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
Sure.
जवाब देंहटाएंMujhe kya karna hai
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
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