मृद्गन्ध - गणेश कनाटे

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अब जो बारिश आती है 
अब जो मिट्टी भीग जाती है
अब जो गीली मिट्टी की गंध आती है
- बदली बदली सी आती है

इस मृद्गन्ध में अब घुल गयी है सड़ांध
सड़ांध उन मुर्दा जिस्मों की
जो बेटे थे मिट्टी के
पर मिट्टी में मिल गए
उसी मिट्टी में मजबूती से खड़े
पेड़ों पर लटक कर

मैं इस नई गंध के लिए
ढूंढ रहा हूँ, एक नया नाम

आपको सूझे तो लिख दीजियेगा
अपने पास ही कहीं गीली मिट्टी पर
मुझ तक वह गंध पहुंच जाएगी...

गणेश कनाटे

हजारों की संख्या में आत्महत्या करते किसानों को श्रद्धांजलि देते हुए...


* औसतन, हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या, यह हमारे देश का सच है.

मृद्गन्ध का नया नाम ढूंढ रहा हूँ...

"Philosophers have hitherto interpreted the world; the point however, is to change it." - Karl Marx

1 टिप्पणी:

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