19 अगस्त 2016

कश्मीर पर साहसिक कदम - अशोक चतुर्वेदी

Ashok Chaturvedi's profile photo

भारत की स्वतंत्रता के बाद पहली बार इतने वर्षों में देश की किसी सरकार ने कश्मीर पर एक सही स्टैंड लिया है ! राज्यसभा में कश्मीर पर हुई बहस के बाद इसी मसले पर विचार विमर्श के लिए बुलाई गयी सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने साफ़ कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का अभिन्न हिस्सा है और जब हम जम्मू कश्मीर की बात करते हैं तो राज्य के चारों भागों जम्मू,लद्दाख,कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) की चर्चा करनी चाहिए, प्रदेश के इन  चारों भागों के लोग राज्य के स्टेक होल्डर हैं अतः राज्य के बारे में किसी भी निर्णय करने में इनकी हिस्सेदारी होनी चाहिए ! मतलब साफ़ था कि न तो सिर्फ कश्मीरियों की हिंसा पूरे राज्य के विकास और शांति को बंधक बना सकती है और न ही पाकिस्तान, जिसने राज्य के एक बड़े हिस्से पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है, कश्मीर के अंतर्राष्ट्रीयकरण के नाम पर भारत को हमेशा ब्लैकमेल कर सकता है , उल्टे भारत ही अब पाकिस्तान को पीओके और बलूचिस्तान में उसके द्वारा वहां के लोगों पर किये जा रहे अत्याचारों पर बेनकाब करेगा ! अब भारत दुनिया को बताएगा कि कैसे पाकिस्तान पीओके के लोगों को उनके मूल अधिकारों तक से वंचित रखे हुए है और कैसे पाकिस्तानी अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले बलूचों को बेरहमी से मारा जा रहा है ! 

असल में आज़ादी के बाद से अब तक जम्मू कश्मीर के मसले में पाकिस्तान के आक्रामक रुख के मुकाबले भारत का रुख हमेशा रक्षात्मक ही रहा, 1948 में पाकिस्तानी आक्रामकों द्वारा जम्मू कश्मीर राज्य की कब्जाई हुई भूमि को दुश्मनों से छुड़ाने में लगी बढ़ती हुई भारतीय सेना को रोककर हम ही इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए अन्यथा कुछ दिनों की ही बात थी जब पूरे जम्मू कश्मीर राज्य से हमारी सेना उन्हें खदेड़ देती किन्तु हमने खुद संयुक्तराष्ट्र की पंचायत के चक्कर में कि संयुक्तराष्ट्र हमें उस हिस्से को पाकिस्तान से वापिस दिला देगा, राज्य के ऐक बड़े हिस्से को पाकिस्तान के कब्जे में रह जाने दिया और पाकिस्तान की नीयत जानते हुए भी इस अस्वाभाविक और बेवकूफी भरे सपने के सच होने का हमें इतना विश्वास था कि हमने इसी आशा में पीओके के क्षेत्रों और लोगों के नाम पर जम्मू कश्मीर राज्य विधान सभा में 24 सीटें खाली रखी कि उन क्षेत्रों के संयुक्तराष्ट्र द्वारा पाकिस्तान से वापिस दिला देने पर इन सीटों को वहां के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा भरा जायेगा ! 68 वर्ष बीत जाने पर आज भी पीओके के नाम पर खाली रखी ये सीटें आज भी नहीं भरी गयीं !

तीन युद्ध और ऐक कारगिल के बाद भी स्तिथि वही की वही है, पाकिस्तान से जम्मू कश्मीर का वह हिस्सा वापिस लेना तो दूर, हमने इन युद्धों में जीते हुए सामरिक महत्त्व के क्षेत्र भी पाकिस्तान को वापिस दे दिए  ! हाँ 22 फरवरी 1994 को हमारी संसद ने सर्वसम्मति से ऐक प्रस्ताव अवश्य पारित किया जिसके अनुसार पाकिस्तान उन क्षेत्रों को खाली कर दे जो उसने भारतीय राज्य जम्मूकश्मीर के अपने आक्रमण द्वारा कब्ज़ा लिए हैं ! लेकिन ये प्रस्ताव सिर्फ कागजी प्रस्ताव ही रह गया और पाकिस्तान यथावत पीओके को भूल कर भारतीय कश्मीरियों के आत्मनिर्णय का सबसे बड़ा हिमायती होने के नाम पर हमें धमकाते हुए विश्व के हर फोरम पर कश्मीर का मसला उठता रहा और हम सिर्फ अपनी सफाई देते रहे बिना विश्व को ये बताये कि असली अपराधी तो पाकिस्तान है जिसने जम्मू कश्मीर के ऐक बड़े भू भाग पर न केवल अवैध कब्जा कर रखा है बल्कि इसका ऐक हिस्सा चीन को भी दे दिया है !

अब जब पाकिस्तान के प्रति नीति में आक्रामक रुख अपनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं विदेश मंत्रालय को पीओके पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे और वहां के नागरिकों पर पाकिस्तानी सरकार द्वारा अत्याचार के मामले उठाने का निर्देश दिए गए हैं तो ऐक ही दिन में पाकिस्तान की अकड़ ढीली पड़ गयी है और अब सरताज अजीज कश्मीर पर भारत को बातचीत के निमंत्रण की बात करने लगे हैं !

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक ने कश्मीर में हालात की जानकारी और वहां जा कर लोगों से मिलने के लिए वहां सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया, मतलब साफ़ है कि कोई सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कश्मीर नहीं जायेगा ! समझने की बात है कि 2008 और 2010 के बिगड़े हालातों में वहां संसदीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गए थे पर क्या परिणाम रहे, समस्या की जड़ में के लोग इनसे मिलने ही नहीं आये, हाँ प्रतिनिधिमंडल के सदस्य खुद गिलानी जैसे हुर्रियत नेताओं को महत्त्व देते हुए उनके घर उनसे मिलने गए और नतीजा क्या निकला, गिलानी आज फिर वहीँ का वहीँ है ! हाँ इनमे से कुछ वहां जा कर अपने बेतुके बयानों से राज्य सरकार को परेशानी में डाल सकते हैं या सुरक्षाबलों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं !     

इस सर्वदलीय बैठक में ऐक और नीतिगत बदलाव आया जब यह निर्णय लिया गया कि कश्मीर के मुख्यधारा के राजनैतिक दल,सिविल सोसाइटी या हर किसी से तो बातचीत की जाय लेकिन हुर्रियत जैसे अलगाववादियों को कोई महत्त्व न देते हुए उनसे कोई बातचीत न की जाय ! ऐसे देश द्रोहियों से बात की भी कैसे जा सकती है जो इस देश के,भारत के हर प्रतीक से नफरत करते हों और उसका अपमान भी ! जो पाकिस्तानी पिट्ठू कश्मीर की दीवारों पर गो इंडिया गो बैक के नारे लिख रहे हैं, जो पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर 14 अगस्त को कश्मीर भर में पाकिस्तानी झंडे फहराने की घोषणा कर रहे हैं और भारतीय स्वतंन्त्रता दिवस पर सिविल कर्फ्यू और घरों पर काले झंडे लगाने की योजना बना रहे हैं ! इन पाकिस्तान परस्तों को न कश्मीर की आज़ादी से कोई मतलब है और न कश्मीरियों के भविष्य से, इन्हें तो बस लाशों के ढेर पर अपनी नेतागीरी चमकानी है ! अतः कश्मीरियों के इन स्वयंभू नेताओं से तो बात करने में कोई तुक ही नहीं है !

प्रधानमंत्री के उठाये गए इन साहसिक कदमों से निश्चय ही बिगड़े हुए पड़ोसी को दूसरों के घर में आग लगाने का तापमान पता चलेगा और कश्मीर घाटी में उसके पिट्ठूओं को भी अपनी औकात समझ आएगी !                                   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें