1 फ़रवरी 2014

अब इस दयार में इन ही का बोलबाला है - नवीन

अब इस दयार में इन ही का बोलबाला है
हमारा दिल तो ख़यालों की धर्मशाला है

नज़ाकतों के दीवाने हमें मुआफ़ करें
हमारी फ़िक्र दुपट्टा नहीं, दुशाला है

यक़ीन जानो कि वो मोल जानता ही नहीं
सदफ़ के लाल को जिसने कि बेच डाला है

बड़े जतन से लिखाये गये हैं अफ़साने
कहीं-कहीं किसी मुफ़लिस का भी हवाला है

क़ुसूर सारा हमारा है, हाँ हमारा ही
मरज़ ये फर्ज़ का ख़ुद हमने ही तो पाला है

हमारी ख़ुद की नज़र में भी चुभ रहा था बहुत
लिहाज़ा हमने वो चोला उतार डाला है

1 टिप्पणी:

  1. हमारी फ़िक्र दुपट्टा नहीं, दुशाला है ....क्या दूर तक की खबर ली है.....वाह!

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