पृष्ठ

4 नवंबर 2013

कहाँ गागर में सागर होता है साहब - नवीन

कहाँ गागर में सागर होता है साहब
समन्दर तो समन्दर होता है साहब

हरिक तकलीफ़ को आँसू नहीं मिलते
ग़मों का भी मुक़द्दर होता है साहब

मेरी आँखों में होता है मेरा घर-बार
मगर पलकों पे दफ़्तर होता है साहब

मुआफ़ी के सिवा नेकी भी कीजेगा
हिसाब ऐसे बराबर होता है साहब

मेरे घर से कोई भूखा नहीं जाता
यहाँ लम्हों का लंगर होता है साहब


:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे हजज मुसद्दस सालिम
१२२२ १२२२ १२२२
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें