दौरिबे
बारेन के पिछबाड़ें दुलत्ती दै दई
रेंगबे
बारेन कूँ मैराथन की ट्रॉफ़ी दै दई
बोट
तौ दै आये हम पे लग रह्यौ ऐ ऐसौ कछ
देबतन
नें जैसें महिसासुर कूँ बेटी दै दई
मैंने
म्हों जा ताईं खोल्यौ ताकि पीड़ा कह सकूँ
बा
री दुनिया तैनें मो कूँ फिर सूँ रोटी दै दई
सब
कूँ ऊपर बारौ फल-बल सोच कें ई देतु ऐ
मन्मथन
कूँ मन दये मस्तन कूँ मस्ती दै दई
जन्म
लीनौ जा कुआँ में बाई में मर जाते हम
सुक्रिया ऐ दोस्त जो हाथन में रस्सी दै दई
[भाषा धर्म के अधिकतम निकट रहते हुये उपरोक्त गजल का भावार्थ]
दै दई - दे दी, बारेन कों - वालों को
दौड़ने वालों के पिछवाड़े दुलत्ती दै दई
रेंगने वालों को मैराथन की ट्रॉफ़ी दै दई
जैसे ही पेटी में डाला वोट – कुछ ऐसा लगा
देवता लोगों ने महिसासुर को
बेटी दै दई
इसलिये मुँह खोला मैं ने ताकि पीड़ा कह सकूँ
वा[ह] री दुनिया तू ने मुझ को फिर से रोटी दै दई
सब को ऊपर वाला फल-बल बख़्शता है
सोच कर
मन्मथों को मन दये मस्तों को मस्ती दै दई
तन धरा था जिस कुएँ मैं उस में ही मर जाते हम
शुक्रिया ऐ दोस्त जो हाथों में रस्सी दै दई
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
2122 2122 2122 212
बोट तौ दै आये हम पे लग रह्यौ ऐ ऐसौ कछ
जवाब देंहटाएंदेबतन नें जैसें महिसासुर कूँ बेटी दै दई...........बहुत बढ़िया है|
दौरिबे बारेन के पिछबाड़ें दुलत्ती दै दई
जवाब देंहटाएंरेंगबे बारेन कूँ मैराथन की ट्रॉफ़ी दै दई
....वाह! बहुत ख़ूबसूरत...मज़ा आ गयो....