ये क़लम का ही असर है मस’अलों पर
लोग ख़ुद आने लगे हैं क़ायदों पर
बाप उलट देते हैं बेटों की दलीलें
हम बहुत कन्फ्यूज हैं इन पैंतरों पर
शायद इन में भी हो सिस्टम उम्र वाला
मत कसो ताने – पुराने – आईनों पर
राह को भी चाहिये पेड़ों का झुरमुट
गर्मियाँ बढ़ने लगी हैं रासतों पर
हर समर में हम तुम्हारे साथ में थे
देख लो अब भी खड़े हैं मोरचों पर
गौने पे मिलता था शादी का निमंत्रण
बोझ कितना था हमारे डाकियों पर
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें