11 मई 2012

कोई तो जा के समझाये हमारे कर्णधारों को - नवीन

नया काम
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कोई तो जा के समझाये हमारे कर्णधारों को।
चलो मिल कर भटकने से बचाएँ होनहारों को॥


भले अफ़सर नहीं बनते, भले हाकिम नहीं बनते।
चलो हम मान लेते हैं कि सब आलिम नहीं बनते।
मगर इतने ज़ियादा नौजवाँ मुजरिम नहीं बनते।
सही रुजगार मिल जाते अगर बेरोज़गारों को॥


निरक्षरता निरंकुशता के धब्बे कैसे छूटेंगे।
कुशलता-दक्षता वाले ख़ज़ाने कैसे लूटेंगे।
अगर बादल नहीं छाये तो झरने कैसे फूटेंगे।
हमारी देहरी तक कौन लायेगा बहारों को॥


अगर सच में सुमन-सौरभ लुटाने की तमन्ना है।
अगर सच में धरा पर स्वर्ग लाने की तमन्ना है।
अगर सच में ग़रीबी को मिटाने की तमन्ना है।
तो फिर कर्ज़ों की दलदल से निकालें कर्ज़दारों को॥


चलन के सूर्य को संक्रान्ति हम जैसों से मिलती है।
हरिक संक्रान्ति को विश्रान्ति हम जैसों से मिलती है।
वो तो लोगों को मन की शान्ति हम जैसों से मिलती है।
वगरना पूछता ही कौन है साहित्यकारों को॥


Youtube Link:- https://www.youtube.com/watch?v=yiE-eX54bU0

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यही चिन्ता सताये जा रही है कर्णधारों को
भटकने से भला कैसे बचायेँ होनहारों को 

दयारों में न ढूँढेंगे अगर हम आबशारों को
तो फिर गुलशन तलक किस तरह लायेंगे बहारों को

मुहब्बत और तसल्ली के लिये ही रब्त क़ायम है
वगरना पूछता है कौन हम साहित्यकारों को

उमीदें थीं यक़ीनन और भी बेहतर तरक़्क़ी की
मुनासिब काम दे पाये न हम बेरोज़गारों को

कोई हमदर्द लगता है, तो कोई जान का दुश्मन
बता डाले थे हमने राज़ अपने दोस्त-यारों को

ये हमसे तेज़ चलते हैं, बहुत जल्दी समझते हैं
चलो हम राह दिखलायें हमारे होनहारों को

बिना उन की रज़ा तुम भी इन्हें छू तक न पाओगे
रक़ीबों को न सौंपो यार वादी के चिनारों को  

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

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