16 सितंबर 2011

राहुल द्रविड़ द ग्रेट क्रिकेटर

राहुल द्रविड़ का नाम ले कर, आइये बातें करें|
हर दम कि जिन के चेहरे से, फूल खुशियों के झरें||
वो टीम के अन्दर रहें, या - फिर, जुदा हों टीम से|
हमने सुने अब तक न उन से, शब्द कड़वे नीम से||

इस मीडिया ने जब कि सब कुछ, जाँच औ परखा लिया|
'दी वाल' को दीवाल जैसा, नाम तब ही तो दिया||
इस ओर हर बोलर द्रविड़ को, देख कर डरता रहा|
तो उस तरफ बल्ला द्रविड़ का, स्कोर बुक भरता  रहा||

यह ज़िंदगी है दोस्त,कब ये, एक जैसी रह सकी|
राहुल द्रविड़ की ज़िंदगी में - भी, समय था अनलकी||
जब वक़्त रूठा हो, न कोई - बात बन पाए कभी|
आलोचना के वश भ्रमित हो, बोलने लगते सभी||

इक दौर था जब द्रविड़ के बिन, टीम चलती थी नहीं|
इक दौर था जब द्रविड़ के बिन, दाल गलती थी नहीं||
इक दौर फिर आया अचानक, द्रविड़ अपना खो गया|
हिन्दोसतां की टीम से ही, नाम गायब हो गया||

पर स्वाभिमानी आदमी कब,  भाव देता वक़्त को|
'कर्मेष्ठ', कर्मों से हिला दे, इंद्र के भी तख़्त को|
दिन रात मेहनत की, न परवा की, ज़रा भी 'निंद' की|
कुछ वक़्त बीता था, कि राहुल, शान था फिर हिंद की||

इस हाल के इंग्लेंड दौरे - के नतीज़े देखिये|    
उस के मुताबिक़ फिर द्रविड़ की, कामयाबी लेखिये||
  'दी वाल' तो दीवाल है भई, क्या कहें उस के लिए|
हम तो कहेंगे बस यही, जब - तक जिए, 'वट' से जिए|| 



[छन्द - हरिगीतिका]

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