घर-द्वार, परिवार से बड़ी न जीत हार,
स्वीकार या अस्वीकार, संस्कार निभाइए.
सोते जागते हमेशा, आबरू का ध्यान रखें,
आबरू के लिए सब कुछ ही लुटाइए.
धरती पे रहें पाँव, खेलें न कदापि दाँव,
धूप हो या छाँव, काँव-काँव न सुनाइये.
रूचि हो जो राजनीति में तो लड़िये चुनाव,
राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइये.
समस्या पूर्ति मंच द्वारा घनाक्षरी छन्द पर आयोजित आयोजन के दौरान लिखा था इसे. प्रकाशित अब कर रहा हूँ.
कल 13/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंयशवंत जी की नई पुरानी हलचल का
एक नायाब मोती.
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
बहुत सुन्दर धनाक्षरी है आदरणीय नवीन भाई जी...
जवाब देंहटाएंधरती पे रहें पाँव, खेलें न कदापि दाँव,
धूप हो या छाँव, काँव-काँव न सुनाइये..... वाह...
आनंद आ गया... सादर...