हिन्दी उर्दू भाषाएँ व लिपियाँ - नवीन

"फ़ारसी लिपि (नस्तालीक़) सीखो नहीं तो हम आप की ग़ज़लों को मान्यता नहीं देंगे" टाइप जुमलों के बीच मैं अक्सर सोचता हूँ क्या कभी किसी जापानी विद्वान ने कहा है कि "हाइकु लिखने हैं तो पहले जापनी भाषा व उस की 'कांजी व काना' लिपियों को भी सीखना अनिवार्य है"। क्या कभी किसी अंगरेज ने बोला है कि लैटिन-रोमन सीखे बग़ैर सोनेट नहीं लिखने चाहिये।

मेरा स्पष्ट मानना है कि:-

कोई भी रस्म-उल-ख़त* वह ज़मीन है जिस पर।
ज़ुबानें पानी की मानिन्द रक़्स करती हैं॥
*लिपियाँ

उर्दू अगर फ़ारस से आयी होती तब तो फ़ारसी लिपि की वकालत समझ में आती मगर यह तो सरज़मीने-हिन्दुस्तान की ज़ुबान है भाई। इस का मूल स्वरूप तो देवनागरी लिपि ही होनी चाहिये - ऐसा मुझे भी  लगता है। हम लोगों ने रेल, रोड, टेम्परेचर, फ़ीवर, प्लेट, ग्लास, लिफ़्ट, डिनर, लंच, ब्रेकफ़ास्ट, सैलरी, लोन, डोनेशन जैसे सैंकड़ों अँगरेजी शब्दों को न सिर्फ़ अपनी रोज़मर्रा की बातचीत का स-हर्ष हिस्सा बना लिया है बल्कि इन को देवनागरी लिपि ही में लिखते भी हैं। इसी तरह अरबी-फ़ारसी लफ़्ज़ों को देवनागरी में क्यों नहीं लिखा जा सकता। उर्दू के तथाकथित हिमायतियों को याद रखना चाहिये कि देवनागरी लिपि उर्दू ज़ुबान के लिये संजीवनी समान है।

कुदरत का कानून तो यह ही कहता है साहब।
चिपका-चिपका रहता हो वह फैल नहीं सकता॥
मज़हब और सियासत से भाषाएँ मुक्त करो।
चुम्बक से जो चिपका हो वह फैल नहीं सकता॥

आय लव टु राइट एण्ड रीड उर्दू इन देवनागरी लिपि - यह आज की हिंगलिश है जिसे धड़ल्ले से बोला जा रहा है - लिहाज़ा लिख कर भी देख लिया।

अगर उच्चारण के आधार पर कोई बहस करना चाहे तो उसे पचास-साठ-सत्तर यानि अब से दो-तीन पीढियों पहले के दशकों की फ़िल्मों में शुद्ध संस्कृत निष्ठ हिन्दी और ख़ालिस पर्सियन असर वाली उर्दू के मज़ाहिया इस्तेमालों पर एक बार नज़रे-सानी कर लेना चाहिये। कैसा-कैसा माख़ौल उड़ाया गया है जिस पर आज भी हम जैसे भाषा प्रेमी भी अपनी हँसी रोक नहीं पाते।

बिना घुमाये-फिराये सीधी -सीधी दो टूक बात यही है कि उर्दू विभिन्न विभाजनों के पहले वाले संयुक्त  हिन्दुस्तान की ज़ुबान है जिस की मूल लिपि देवनागरी को ही होना चाहिये - ऐसा मुझे भी लगता है। जैसे हम लोग चायनीज़, जर्मनी आदि स्वेच्छा से सीखते हैं उसी तरह फ़ारसी लिपि को सीखना भी  स्वेच्छिक होना चाहिये - बन्धनकारक कदापि नहीं।

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