9 सितंबर 2013

हम ने दर्दों को दिलो-जाँ से लगाया ही नहीं - नवीन

ग़म की अगवानी में कालीन बिछाया ही नहीं
हम ने दर्दों को दिलो-जाँ से लगाया ही नहीं

रूह ने ज़िस्म की आँखों से तलाशा जो कुछ
सिर्फ़ आँखों में रहा दिल में समाया ही नहीं

लडखडाहट पे हमारी कोई तनक़ीद न कर
बोझ को ढोया भी है सिर्फ़ उठाया ही नहीं

अपनी कोशिश रही लमहों को युगों तक ले जाएँ
रेत पे हमने लक़ीरों को बनाया ही नहीं

एक बरसात में ढह जाने थे बालू के पहाड़
बादलो तुम ने मगर ज़ोर लगाया ही नहीं

बहरे रमल मुसम्मन मखबून महजूफ़
फ़ाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फ़ालुन
2122 1122 1122 22 

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