30 जून 2013

SP2/2/8 इश्क़, शायरी, मयकशी, नहीं सभी का काम - सिब्बन बैजी [सी. बी. सिंह]

नमस्कार

कमेण्ट देना भी अपने आप में एक कला है। उस में भी भाई अरुण निगम जी के कमेण्ट तो भाई क्या कहने। मेरी बात पर विश्वास न हो तो आप शेखर चतुर्वेदी के दोहों पर तथा श्याम जी के दोहों पर दोहों के माध्यम से ही जो अरुण जी ने कमेण्ट दिये हैं उन्हें एक बार पढ़ कर देखिएगा। 

साथियो सच ही तो है कि विद्या रौब-दाब या शानोशौक़त की मुहताज़ नहीं होती, वह तो ढूँढती है योग्य वाहक को। आदरणीय सिब्बन बैजी जी ऐसे ही साधक हैं। हाथरस के पास के एक गाँव बिजय गढ़ के मूल निवासी सी. बी. सिंह को मुम्बई में भाई आलोक भट्टाचार्य जी ने सिब्बन बैजी बना दिया। अलग ही टेस्ट की ग़ज़लें और दोहे लिखने वाले सिब्बन बैजी साहब आज इस मञ्च के चवालीसवें [44] रचनाधर्मी बन कर हमारे बीच उपस्थित हो रहे हैं। आइये पढ़ते हैं सिब्बन साहब के दोहे :-

जब देखे प्यासे कुएँ, और झुलसती छाँव
रस्ता मेरे गाँव का, लौटा उल्टे पाँव

साहब हमें न चाहिये, इतना महँगा ज्ञान
बदले में जो छीन ले, होठों की मुस्कान

निर्धनता में हो गयी, सारी देह सराय
हरिक बटोही पीर का, बरसों रह कर जाय

इसी लिये चलता रहा, रस्ता अपने साथ
हमने छोड़ा ही नहीं, कभी वक़्त का हाथ

आख़िर क्यूँ मानूँ भला, क़िस्मत से मैं हार
जब तक मेरे पास है, मेहनत की तलवार

ठोकर लगने पर न दे, पत्थर को इल्ज़ाम
अंधी दौड़ों का यही, होता है अंज़ाम

इश्क़, शायरी, मयकशी, नहीं सभी का काम
अच्छे-अच्छों के 'म रा', हो जाते हैं 'रा '

जाम प्रेम का क्यूँ नहीं, होता चकनाचूर
कुछ हम भी ख़ुद्दार थे, कुछ तुम भी मगरूर

हमने सीखा ही नहीं, कहना सेठ, हुजूर
इसीलिए तो सीढ़ियाँ, रहीं पाँव से दूर

जब से मेरे खेत का, चढ़ा करेला नीम
खरबूजों को दे रहा, नई-नई तालीम

जिस ने बाँटे उम्र भर, ईसा-नानक-बुद्ध
उस का ही घर लड़ रहा, तरह तरह के युद्ध

वाह वाह वाह.....  जिस ने उम्र भर ईसा मसीह, गुरु नानक और गौतम बुद्ध प्रणीत प्रेम-अहिंसा और उपकार वाली भावनाओं को लोगों में बाँटा, आज तरह-तरह के युद्धों को झेल रहा है। बढ़िया दोहा है। शुरू से ले कर अन्त तक एक से बढ़ कर एक दोहा...... क्या बात है, क्या बात है, बहुत ख़ूब... बहुत ख़ूब। साथियो आप सभी इन दोहों का आनन्द लें, अपने सुविचार प्रस्तुत करें और मैं बढ़ता हूँ अगली पोस्ट की तरफ़।

इस आयोजन की घोषणा सम्बन्धित पोस्ट पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें
आप के दोहे navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें  

8 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय सिब्बन बैजी साहब से परिचय करवाने के लिए आपका हार्दिक आभार, नवीन भाईजी. वाकई इन दोहों में अनुभव पूरे कथ्य-प्रवाह और बेजोड़ ठसकपन के साथ बोलता हुआ है.

    कुछ दोहे तो एकदम से आश्वस्त करते हैं कि छंद-रचना ठोस विचारों की सार्थक उपज है और उनके बिम्ब पाठक से सहज ही हामी लेता हुए हैं.


    साहब हमें न चाहिये, इतना महँगा ज्ञान
    बदले में जो छीन ले, होठों की मुस्कान

    ठोकर लगने पर न दे, पत्थर को इल्ज़ाम
    अंधी दौड़ों का यही, होता है अंज़ाम


    इन दोहों की जितनी तारीफ़ की जाय कम है.

    कार्यसिद्धि के क्रम में पसीना चू-चू जाने के मसल को कितना सुन्दर आयाम मिला है ! इस दोहे के लिए विशेष बधाई --


    इश्क़, शायरी, मयकशी, नहीं सभी का काम
    अच्छे-अच्छों के 'म रा', हो जाते हैं 'रा म'


    वहीं, आज के नए-नए अव्यावहारिक शोधों और ज़मीन से कटे सुझावों-प्रयासों पर इस तंज़ ने रोचक ढंग से ध्यान खींचा है --

    जब से मेरे खेत का, चढ़ा करेला नीम
    खरबूजों को दे रहा, नई-नई तालीम


    आदरणीय बैजी साहब को मेरी ढेर सारी बधाइयाँ और सादर शुभकामनाएँ. आपके इस दोहे में मैं अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति देखता हूं..


    जिस ने बाँटे उम्र भर, ईसा-नानक-बुद्ध
    उस का ही घर लड़ रहा, तरह तरह के युद्ध


    सादर

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  2. शानदार दोहे हैं। कहाँ कहाँ से नवीन जी ऐसे रत्न खोजकर लाते हैं समस्यापूर्ति में। बहुत बहुत बधाई सिब्बन जी को

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  3. आदरणीय सिब्बनजी इन शानदार और लाजबाब दोहों के प्रस्तुति हेतु आपको हार्दिक बधाई.

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  4. अपनी टिप्पणी को आज जब मैंने अपलोड किया था तो मेन पेज पर दिख रही थी. आश्वस्त हो ने के बाद मैंने मेन पेज को बंद कर दिया. वो टिप्पणी अभी नहीं दिख रही.
    टिप्पणियाँ मेन पेज से स्पैम में जम्प करती हैं क्या ? नवीनभाई, कृपया देख लीजियेगा.

    आदरणीय सिब्बनजी को अच्छे दोहों के लिए पुनः बधाई..

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  5. पहली बार पढ़ा इनको..
    आभार आपका !

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  6. क्या बात! क्या बात!! क्या बात !!!

    वाह वाह सिब्बन जी ! बहुत खूब दोहे कहे हैं आपने.

    ये वाला तो दिल में उतर गया:

    निर्धनता में हो गयी, सारी देह सराय
    हरिक बटोही पीर का, बरसों रह कर जाय

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  7. पहली बार पढ़ा सिब्बन बैजी : सी. बी. सिंह जी को ...
    वाकई बहुत अच्छे दोहे लिखे हैं
    हार्दिक बधाई !
    इनका लिखा और भी पढ़ने की इच्छा रहेगी

    शुभकामनाओं सहित...
    सादर...
    राजेन्द्र स्वर्णकार


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