आसमाँ
तेरी ख़लाओं से गुज़र मेरा भी है
रौशनी
जैसा फ़साना दर-ब-दर मेरा भी है
मैं
नहीं उड़ता तो क्या? ख़ाहिश तो उड़ती है मेरी
हर परिन्दे
में जड़ा एकाध पर मेरा भी है
उसका
दरवाज़ा मेरी सूरत नहीं पहिचानता
बावजूद
इस के मिरे भाई का घर मेरा भी है
या तो
जन्नत खोल दे, या फिर ज़मीं को भूल जा
तू ही
तो मालिक नहीं रुतबा इधर मेरा भी है
मैं
नहीं तो वो नहीं और वो नहीं तो तू नहीं
ध्यान
रखना चाँदनी तेरा क़मर मेरा भी है
कोई
भी रस्ता नहीं बनता है पत्थर के बग़ैर
मख़मली
राहों में तेरी कुछ हुनर मेरा भी है
नूर
के रुतबे को यूँ तो कौन पहुँचेगा ‘नवीन’
हाँ
मगर अंदाज़ थोड़ा कारगर मेरा भी है
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहुत ही उम्दा गजल,,,बधाई
जवाब देंहटाएंRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
नहर ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुतीकरण,आभार.
जवाब देंहटाएंगजब..भाव भरा..
जवाब देंहटाएंगहन भाव और सुन्दर शब्द चयन |
जवाब देंहटाएंआशा