26 फ़रवरी 2011

ये रात कैसे अचानक निखर निखर सी गयी

धुआँ उठा है कहीं खत जला दिये गए क्या
किसी के नाम के आँसू बहा दिये गए क्या

तो क्या हमारा कोई मुंतज़िर नहीं है वहाँ
वो जो चराग थे सारे बुझा दिये गए क्या

उजाड़ सीने में ये साँय साँय आवाजें
जो दिल में रहते थे बिल्कुल भुला दिये गए क्या

हमारे बाद न आया कोई भी सहरा तक
तो नक्श-ए-पा भी हमारे मिटा दिये गए क्या

ये रात कैसे अचानक निखर निखर सी गयी
अब उस दरीचे से परदे हटा दिये गए क्या
:- मनोज अज़हर
  • azhar.manoj@gmail.com

मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन  
1212 1122 1212 22 
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ

19 टिप्‍पणियां:

  1. शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको, गज़ब शेर कहे हैं भाई। बधाई।

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  2. वाह भाई वाह, हर एक शे’र शानदार। मनोज जी को बहुत बहुत बधाई।

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  3. Bahut Achche sher padhvaye aapne , Badhai!!!!

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  4. TILAK RAAJ SAHIB...utsaahwardhan ke liye bahut dhanyabaad !

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  5. ये रात कैसे अचानक निखर निखर सी गयी
    अब उस दरीचे से परदे हटा दिये गए क्या
    वाह ...बहुत खूब।

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  6. बहुत सुन्दर...
    बहुत सुन्दर रचना...
    :-)

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  7. शानदार शेर , बधाई मनोज जी

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  8. बहुत ही लाजवाब शेर ... जुदा अंदाज़ के शेर ...

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    1. दिगम्बर नासवा साहब...बहुत शुक्रिया।

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  9. हमारे बाद न आया कोई भी सहरा तक
    तो नक्श-ए-पा भी हमारे मिटा दिये गए क्या

    मनोज जी एक सुंदर गज़ल ...मगर वज़न का ध्यान शायद नहीं दे पाये हर शेर में पहले मिसरे से दुसरे मिसरे में ज्यादा वजन लगता है
    ये केवल लगता है मुझे कोई उस्ताद नहीं हूँ मैं आप एक बार देखिये
    शुक्रिया !

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    1. Anand Dwivedi Sahab..

      आपको जैसा लगता है..दरअस्ल ऐसा है नहीं।

      सभी मिसरे बराबर वज़्न में हैं।
      आइन्दा कोई शुबा हो तो बराए-मेहरबानी साथ में तफ़सील ज़रूर दें ।
      -- मनोज अज़हर ।

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  10. शानदार गजल... मनोज जी को हार्दिक बधाईयाँ...

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