गीत - क्या प्रणय अभिशाप है प्रिय - उदय दिवाकर पाण्डेय

 

क्या प्रणय के पथ में किंचित्

भी थकन अब पाप है प्रिय?

क्या प्रणय अभिशाप है प्रिय?

 

याद है जब वाटिका में मंजरी तुम चुन रही थी

दो नयन के प्रेमरव को तुम नयन से सुन रही थी

हम उषा के द्वार पर एक प्रेम आभा छू रहे थे

शीतकण संयोग की सुंदर कहानी बुन रहे थे

 

क्या कथानक बीच में ही

छोड़ना संताप है प्रिय ?

क्या प्रणय अभिशाप है प्रिय  ?

 

इस हृदय की पीठिका पर बस तुम्हें ही पूजता हूँ

बस तुम्हारे भाल को अपने अधर से चूमता हूँ

प्रेम पाने को तुम्हारा आज भी उपवास कर लूँ

या बनूँ मीरा कहो विष पर भी मैं विश्वास कर लूँ

 

प्रेम के इस आवरण में

वेदना का ताप है प्रिय

क्या प्रणय अभिशाप है प्रिय ?

 

हे प्रिये तुमसे बिछड़कर मैं कहाँ फिर जी सकूँगा

वल्लभा! इस वेदना का घूँट कैसे पी सकूँगा

प्रेम के खरमास में हरदिन तड़प कर रो रहा हूँ

अश्रुओं का बोझ सारा मैं अकेला ढो रहा हूँ

 

प्रेम के इस कुम्भ में भी

क्या कोई निष्पाप है प्रिय

क्या प्रणय अभिशाप है प्रिय ?

2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.