मैं दुखी हूँ...
मैं बहुत दुखी हूँ...
पर उतनी नहीं ,
जितनी वो माँ है
जिसकी बेटी के अधमरे शरीर को
गुंडे घर में फेंक गये चार दिन बाद,
दस बरस की मुनिया को उठा ले जाने की
कनपटी पर बंदूक रख धमकी देते हुये...
मैं दुखी हूँ ...
मैं बहुत दुखी हूँ ...
पर उतनी नहीं ,
जितना वो मर्द है जिसने
अपने बच्चों के साथ खेत में अनाज उगाया
धूप , बारिश,सर्दी की परवाह किये बिना
पर फसल घर पर आने से पहले धरती की
हरियायी छाती पर आग लगा दिया गया...
मैं दुखी हूँ ...
मैं बहुत दुखी हूँ ...
पर उतनी नहीं ,
जितनी कि एक अठारह साल का लड़का
अपनी माँ के शरीर को अस्पताल के गेट पर छोड़
डाक्टरों से मिन्नतें करता है एक बार देखने की ,
पर माँ इंतजार करते -करते आँखें मूँद चुकी है ...
मैं दुखी हूँ ...
मैं बहुत दुखी हूँ ...
पर उतनी नहीं ,
जब एक बूढ़ा आदमी
रेल के सामने कूद कर आत्महत्या कर लेता है
सालों अपनी ही जमीन पर हक पाने के लिये
अदालत के चक्कर लगाता रहा
और केस हार गया क्योंकि पैसे नहीं थे...
मैं दुखी हूँ ...
मैं बहुत दुखी हूँ ...
पर उतनी नहीं
जितना छोटा सा रवि है
बैग में किताबें नहीं कांच के कारखाने का पता है
बारह घंटे काम करेगा भूखे प्यासे
और आंत की बीमारी से मर जायेगा कम उम्र में...
मैं दुखी हूँ ...
मैं बहुत दुखी हूँ ...
पर उतनी नहीं ,
जितना बसेसर सिंह वल्द रमेसर सिंह है
कल ही उसने इक्कीस साल के मृत बेटे की
अरथी को कंधा दिया है राष्ट्रीय सम्मान के साथ
आतंकवादी की गोली का शिकार हो गया था वो...
मैं दुखी हूँ ...
मैं बहुत दुखी हूँ ...
मेरे पास इनकी तरह
दुखी होने की कोई वजह नहीं ...
मेरे आसपास के लोग सिर्फ
इसलिए ही दुखी हैं क्योंकि
घरों में बैठे
खाना खाते ,टी.वी देखते ,फोन पर गपियाते
समाज ,सरकार ,राजनीति ,फिल्म ,मीडिया ,
पाकिस्तान ,चीन ,करोना ,बारिश ,भूकंप
को कोसकर
खिड़की पर बैठ हाथ में चाय का प्याला पकड़ ,
बारिश का आनंद लेते हैं
अचानक दुखी हो जाते हैं ...
सुख को अचार की गुठली की तरह
चबा-चबाकर थक चुके हैं
हम तलाशते हैं भोगे हुये सुख में नया एक और सुख
पर च्यूइंगम कब तक और कितना आनंद देगा ?
और फिर हम अचानक दुखी हो जाते हैं
क्योंकि हमारे पास दुखी होने जैसा दुख ही नहीं ...
दुख ...सुख से ऊबे हुये
अधिकांशत: सुखी लोगों द्वारा
किया गया झूठा विधवा विलाप है
संसार को सुखी बनाने का धंधा
पतितों द्वारा की गयी वेश्याओं की प्रेम प्रतिज्ञा है
संवेदनाओं का भाषायी बलात्कार है
हम दुखी हैं ...
हम बहुत दुखी हैं ...
क्योंकि हमने आजतक जाना ही नहीं
वास्तव में दुख होता क्या है...
सन्ध्या जी की इतनी ह्रदयस्पर्शी और सजग रचना पढ़वाने के लिए ,समस्त सुधि पाठक जन आप के आभारी रहेंगे !
जवाब देंहटाएंआप निरन्तर निरन्तर श्रेष्ठतम रचनाएं प्रकाशित करते जाएंगे ,ऐसी आशा है !🙏
रमेश शर्मा
दर्द के कितने बिंब उकेरती हैं आप,
जवाब देंहटाएंदेश की विविधताओं की तरह, दर्द भी बहुतेरे।
धन्यवाद साहित्यम। धन्यवाद मित्रों 🙏🙏
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