यही
इक मुख़्तसर सी दास्ताँ सब को सुनानी है ।
हर
इक मौसम में ख़ुश रहना यही तो ज़िंदगानी है ॥
मिरे
दिल पर हुई दस्तक न जाने कौन आया है ।
फ़ज़ा
की आहटों में आज ख़ुशबू ज़ाफ़रानी है ॥
तुम्हें
जब मुझ से मिलना हो तो अपने आप से मिल लो ।
तुम्हारे
दिल में रहता हूँ तुम्हारी बात मानी है ॥
कहीं
बालू कहीं पत्थर कहीं कटते किनारे हैं ।
कोई
कुछ भी नहीं कहता ये दरिया की रवानी है ॥
दिखाता
है जो सब को रास्ता दुनिया में सोचो तो ।
ये
उस का ही इशारा है उसी की मेहरबानी है ॥
छुपाऊँ
किस तरह ख़ुद को मैं इन नक़ली नक़ाबों में ।
हक़ीक़त
सामने इक रोज़ यारो आ ही जानी है ॥
प्रेम भटनेरी
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