24 अक्तूबर 2021

यही इक मुख़्तसर सी दास्ताँ सब को सुनानी है - प्रेम भटनेरी



यही इक मुख़्तसर सी दास्ताँ सब को सुनानी है ।

हर इक मौसम में ख़ुश रहना यही तो ज़िंदगानी है ॥

 

मिरे दिल पर हुई दस्तक न जाने कौन आया है ।

फ़ज़ा की आहटों में आज ख़ुशबू ज़ाफ़रानी है ॥

 

तुम्हें जब मुझ से मिलना हो तो अपने आप से मिल लो ।

तुम्हारे दिल में रहता हूँ तुम्हारी बात मानी है ॥

 

कहीं बालू कहीं पत्थर कहीं कटते किनारे हैं ।

कोई कुछ भी नहीं कहता ये दरिया की रवानी है ॥

 

दिखाता है जो सब को रास्ता दुनिया में सोचो तो ।

ये उस का ही इशारा है उसी की मेहरबानी है ॥

 

छुपाऊँ किस तरह ख़ुद को मैं इन नक़ली नक़ाबों में ।

हक़ीक़त सामने इक रोज़ यारो आ ही जानी है ॥

 

प्रेम भटनेरी

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