हो ज़ुरूरी तभी हदपार क़दम रखते हैं - नवीन

हो ज़ुरूरी तभी हदपार क़दम रखते हैं ।
हम समुन्दर हैं किनारों का भरम रखते हैं ।।
 
हम फ़रिश्ते तो नहीं फिर भी जुदा हैं हमलोग ।
फूल से दिल में भी पत्थर के सनम रखते हैं ।। ।
 
एक भी मन का मरज़ मन से निकाला न गया ।
दुश्मनों को भी बड़े ठाठ से हम रखते हैं ॥
 
हम भी शिकवों को रखा करते हैं दिल में लेकिन ।
उम्र इन शोलों की शबनम से भी कम रखते हैं ।।
 
सादा जीवन है मगर उच्च विचारों के साथ ।
टाट के ज़ेब में सोने के क़लम रखते हैं ।।


नवीन सी. चतुर्वेदी


3 टिप्‍पणियां:

  1. तुम ही कहते थे ग़ज़ल ज़ख्मों को भर देगी 'नवीन'
    तुम भी जिद छोड़ दो और हम भी कलम रखते हैं ..

    बहुत खूब ... क्या बात कही है नवीन जी ... सुभान अल्ला ... काबिले तारीफ़ ...

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  2. अब आ रहे हैं नवीन भाई अपने पुराने रंग में। पुराने नवीन भाई का स्वागत है।

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