नुमाया हो गई हस्ती, अयाँ बेबाकियाँ जो थीं
बुढ़ापा किस तरह छुपता बदन पे झुर्रियाँ जो थीं
भँवर से बच निकलने की जुगत हम को ही करनी है
बहुत गहरे उतरने में हमें दिलचस्पियाँ जो थीं
तरसते ही रहे हम आप के इकरार की ख़ातिर
मुक़द्दर में हमारे आप की ख़ामोशियाँ जो थीं
दिलों की हमख़याली ही दिलों को पास लाती है
त’अल्लुक़ टूटना ही था, दिलों में
दूरियाँ जो थीं
किसी पर तबसरा करने से पहले सोचिये साहब
परिन्दे किस तरह उड़ते बला की आँधियाँ जो थीं
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 21/11/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल...
जवाब देंहटाएंदिलों की हमख़याली ही दिलों को पास लाती है
त’अल्लुक़ टूटना ही था, दिलों में दूरियाँ जो थीं
लाजवाब!!!
सादर
अनु