बस एक शब्द के अन्तर से दो छन्द - गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल'

भोजन भजन बनाइये, दिनचर्या अविराम।
योग, मनन चिंतन करे, बदन नयन अभिराम।
बदन नयन अभिराम, संतुलित भोजन करिए।
घूमो सुबहो शाम,मनन अरु चिंतन करिए।
कह ‘आकुल’ कविराय, भजन से भागे जो जन।
ना पाये संतोष, करे कैसा भी भोजन।

'भजन' के स्‍थान पर 'भ्रमण' से स्‍वरुप देखें-

भोजन भ्रमण बनाइये, दिनचर्या अविराम।
योग, मनन चिंतन करे, बदन नयन अभिराम।
बदन नयन अभिराम, संतुलित भोजन करिए।
घूमो सुबहो शाम, मनन अरु चिंतन करिए।
कह ‘आकुल’ कविराय, भ्रमण से भागे जो जन।

रुग्ण वृद्ध हो शीघ्र, करे कैसा भी भोजन।

1 टिप्पणी:

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