30 दिसंबर 2013

जो हम भी दाँव पै अपनी अना लगा देते

जो हम भी दाँव पै अपनी अना लगा देते 
यक़ीन जानो कि एक सल्तनत गँवा देते 

तुम्हारे साथ रहे, ग़म मिला, ख़ुशी बाँटी
हम अपने साथ ही रहते तो सब को क्या देते 

तुम्हारे नयनों की भाषा भी जानते हैं हम 
ज़रा सा चेहरे से चिलमन को ही हटा देते 

वो झीलें जिन में हमारी ही नाव चलती थी
नज़र मिला के ज़रा उन को ही दिखा देते

तुम्हारा जिस्म जो लोबान हो रहा था हुज़ूर 
कम-अज़-कम इतना तो करते हमें सुँघा देते 

सुरों में जिस के मुहब्बत हमारी झनके थी
किसी भी शाम को वो राग ही सुना देते 

हमें मिटाने की तरक़ीब कौन मुश्किल थी  
यूँ हम को लिखते और इस तर्ह से मिटा देते 
(क़लम से लिख के रबर से हमें मिटा देते) 

कहा तो होता कि तुम धूप से परेशाँ हो
हम अपने आप को दुपहर में ही डुबा देते

हमारा शम्स (सूर्य) न होना हमारे हक़ में रहा
न जाने कितने परिन्दों के पर जला देते

यहाँ उजालों ने आने से कर दिया था मना 
वगरना किसलिये शोलों को हम हवा देते 

तुम्हारे वासते रसते बुहारने थे 'नवीन' 
तुम आना चाहते हो इतना ही बता देते

:- नवीन सी. चतुर्वेदी



बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22  

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