बना
लिया था भीड़ ने,
एक बड़ा सा झुण्ड
टन-टन भर के जीव सब,
हिला रहे थे मुण्ड
हिला
रहे थे मुण्ड,
बिना सूँडों के हाथी
स्वारथ
में डूबे केवल ख़ुशियों के साथी
हमने
पूछा भैया कब आएगी आँधी
सारे
बोले जाग जाएँ बस राहुल गाँधी
झक
सफ़ेद कुरता पहन,
दाढ़ी बिना बनाय
इक
निर्धन की खाट पर,
कूल्हे दिये टिकाय
कूल्हे
दिये टिकाय,
ग़रीबी देती गाली
उछले
इतनी बार खाट झोंगा कर डाली
जिस
के घर में राशन-पानी के हैं लाले
उस
से खाना माँग रहे हैं दिल्ली वाले
राजनीति
कहिये इसे,
या दिल का बहलाव
हम
ने पूछा साब जी,
एक बात बतलाव
एक
बात बतलाव गाँव ही क्यूँ जाते हो
दिल्ली
में क्यूँ नहीं जमूड़े नचवाते हो
वो
बोले इन शॉर्ट समझ लो इतना लाले
घास
डालते नहीं सभी को दिल्ली वाले
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
नव-कुण्डलिया छन्द
क्या बात वाह!
जवाब देंहटाएंतीन संजीदा एहसास
संग्रहणीय रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें
वाह..क्या बात है ...सुन्दर कुंडली छंद....
जवाब देंहटाएं---- इसमें नव-कुण्डलिया क्या है..... पर्याप्त प्रयोग हुआ है एवं हो रहा है......बिना आदि व अंत समान वाला कुंडली छंद ...जिसमें अंतिम पंक्ति की तुक पंचम पंक्ति से सम तुकांत होती है....