5 जुलाई 2013

SP2/2/11 मधुमय जीवन का यही; सत्य, सार-संक्षेप - शेषधर तिवारी


नमस्कार

बी एस एन एल वालों की नींद अब तो खुल जानी चाहिये, नहीं तो फिर दोष न दें अगर भाई धर्मेन्द्र कुमार सज्जन किसी गुनाहगार को अगर दौड़ा-दौड़ा कर मारें तो............ हाँ भाई पिछली पोस्ट की टिप्पणी में चेतावनी दी है उन्होंने। हिंदुस्तान में इण्टरनेट आज भी बड़ी समस्या है, ख़ास कर नॉन-मेट्रो सिटीस में। आज जब की विकास सीधा-सीधा इण्टरनेट से जुड़ा है तो हमारे नीति-नियन्ताओं को अपनी कुम्भकर्णी नींद से जागना चाहिये।

पहले समस्या-पूर्ति आयोजन से ही हमारे साथ जो साथी जुड़े हुये हैं उन में भाई शेषधर तिवारी जी भी शामिल हैं। इलाहाबाद में रहते हैं, thatsme.in चलाते हैं और आजकल फेसबुक से उकताये जैसे लग रहे हैं। शेष धर जी उन रचनाधर्मियों में से हैं जिन्हों ने उस उम्र में साहित्यिक साधना आरम्भ की जब आदमी नाती-पोतों को स्कूल बस तक छोड़ने की ड्यूटी निभाने वाला हो जाता है। जिस तरह सौरभ जी से मञ्च ने चिन्तन-परक दोहों के लिये निवेदन किया था, तिवारी जी से कुछ पारिवारिक दृश्य उपस्थित करते दोहों की अपेक्षा की और तिवारी जी ने हमारी प्रार्थना का सम्मान  रख लिया। आज की पोस्ट में पढ़ते हैं भाई शेष धर जी के दोहे :-

उनकी आँखों में पढ़ा, स्नेह-सिक्त सन्देश
आश्वासन पाकर मिटे, मन के  सारे क्लेश

मधुमय जीवन का यही; सत्य, सार-संक्षेप
आती है मधुमास में, नव-सुगन्ध की खेप

बेटे को देखे बिना, लेती माँ पहचान
माँ की आँखों को मिला, दिव्य-दृष्टि का दान

विधि ने पुस्तक में लिखे जीवन के आयाम
कवियों के परिशिष्ट में है अपना भी नाम

सम्मत साक्षी के बिना मिलता किसको न्याय
दूषित मन की साधना, निष्फल होती जाय
 
मछली चारा जानि के, काँटा निगलत जात
मछुआरे को दिख रहे; पैसा, मच्छी-भात

सात जनम के साथ पर, करता हूँ विश्वास
अपना है यह सातवाँ, आगे तुलसीदास

नाम बड़ों का हो गया, करके छोटा काम
हनुमत को देते नहीं क्यूँ गिरिधर सा नाम

कर देता यदि वह फलित, हर माँ का आसीस
फिर पत्थर के सामने, कौन झुकाता सीस

हम सब ने मिल कर किया, कुदरत से खिलवाड़
फल उसका है सामने, सर पर गिरा पहाड़

मरुथल में फैले पड़े, रेता के अम्बार
मेरे जैसों का बसा, क्या अद्भुत संसार
 
बिटिया आयी मायके, बोले शुभ शुभ बोल
माँ की आँखें पारखी, मन को लीन्हा तोल

धर अधरन पर आँगुरी, बूझी मन की प्यास
गीली अँखियन में दिखीं, कुपित ननदिया-सास

बिटिया को हिय से लगा अँखियाँ लीन्हीं मूँद
मन की पीड़ा बह चली, बन आँसू की बूँद

अन्तिम तीन दोहों ने कलेज़ा चीर के रख दिया। बहुत अच्छी तरह से माँ-बिटिया के बीच के कन्सर्न्स को चित्रित किया है आप ने। विविध रंगों से सजे इन दोहों पर दिल खोल कर दाद दीजिएगा। अब हमारे पास तीन [दिगम्बर नासवा भाई और शरद तैलंग जी व् धर्मेन्द्र कुमार सज्जन भाई की] पोस्ट्स बाकी हैं। साथियों से निवेदन है कि अपने दोहे एक-दो दिन में भेजने की कृपा करें, आयोजन अब समापन की ओर अग्रसर है। एक बात आप लोगों ने भी नोट की होगी शायद और वह यह कि इस बार की विशेष दोहे की घोषणा कुछ अधिक जटिल रही।



इस आयोजन की घोषणा सम्बन्धित पोस्ट पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें
आप के दोहे navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें   

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सूचना:-

दोहा सागर
सामयिक दोहकारों से ३० - ३० प्रतिनिधि दोहे, परिचय (नाम, जन्म दिनांक / स्थान, माता-पिता-जीवन साथी का नाम, शिक्षा प्रकाशित पुस्तकें सर्जन विधाएं, पता, दूरभाष / चलभाष ई मेल आदि) तथा चित्र आमंत्रित हैं। इन्हें divyanarmada.blogspot.in में प्रकाशित किया जाएगा। जो साथी चाहेंगे उनके दोहे सहयोगाधार से प्रकाशित हो रहे दोहा सागर में संकलित-प्रकाशित किये जायेंगे। दोहे निम्न पते पर भेजें - salil.sanjiv@gmail.com

इस विषय पर सभी बात-व्यवहार डाइरेक्ट सलिल जी से ही किए जाएँ ..... 

11 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार दोहे। जानदार दोहे। शेषधर जी को कहीं भी पढ़ा जाय निराश नहीं होना पड़ता। बारंबार बधाई उन्हें इन दोहों के लिए

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  2. सभी शानदार दोहों के लिए शेषधर तिवारी जी बधाई !!

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  3. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 10/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. सभी दोहे अपने में अर्थवान एवं स्वयं पूर्ण है. अतएव आपको बधाई आदरणीय

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  5. वाह ! बहुत ही सुन्दर दोहे है तिवारी साब !!
    अंत के तीन दोहे सच में मर्म स्पर्शी हैं . बहुत बंधाई !!!

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  6. वाह !
    अच्छे दोहे लिखे हैं...
    शेषधर तिवारी जी

    शुभकामनाओं सहित...
    राजेन्द्र स्वर्णकार


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