खिल उठा है बहार का मौसम - राज़दान 'राज़'


राज़दान 'राज़'


आँखों में कोई तो नदी होगी
बर्फ़ दिल में पिघल रही होगी

ऊँचे पेड़ों पे आशियाना था
पहले बिजली वहीं गिरी होगी


फूल बिखरा तो ये ख़याल आया
कल कली फूल बन चुकी होगी

आग देखी तो क्यों लगा ऐसा
कोई दुल्हन कहीं सजी होगी

खिल उठा है बहार का मौसम
खुल के अँगड़ाई उसने ली होगी

'राज़' दुनिया के साथ चल न सका
उसकी आदत कोई बुरी होगी

:- राज़दान 'राज़'
9821020801
[दिल से उठा धुआँ से साभार]


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