अपनी गुल्लक फोड़ के बैठी
हुई है।
एक गहरी सोच में डूबी हुई
है।
क्यों दिला पाई न बच्चे को
खिलौना,
ख़ुद से मां इस बात पे रूठी हुई है।
किस की सोहबत में अब रहा जाए।
किस की सोहबत से अब बचा जाए।
सब से मुश्किल यही है तय
करना,
किस के बारे में क्या कहा
जाए।
काम आया नहीं कोई धागा,
आसमां भी ज़रा नहीं पिघला।
यूॅं गया लौट के न आया फिर,
एक इन्सान वक़्त सा निकला।
जब से माॅं जी एक सासू माॅं बनी है।
सास में जो माॅं थी वो खोई
हुई है।
लग रहा है माॅं को अब बेटा
पराया,
अब बहु बेटी बने ये लाज़मी है।
बढ़िया मुक्तक 👍
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
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