ग़ज़ल - सदमात हिज्रे-यार के जब जब मचल गए - अजय 'अज्ञात'


 

सदमात हिज्रे-यार के जब जब मचल गए 

आँखों से अपने आप ही आँसू निकल गए 

 

मुश्किल नहीं था वक़्त की ज़ुल्फ़ें संवारना

तक़दीर की बिसात के पासे बदल गए

 क्या ख़ैरख़्वाह आप से बेहतर भी है कोई

सब हादसात आप की ठोकर से टल गए

 

चूमा जो हाथ आप ने शफ़कत से एक दिन

हम भी किसी फ़क़ीर की सूरत बहल गए

 

पहुंचे नहीं क़दम कभी अपने मक़ाम पर

मंज़िल बदल गयी कभी रस्ते बदल गए

1 टिप्पणी:

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.