वो मेरे मसीहा हैं वही मेरे
ख़ुदा हैं
ये सच है मेरे पापा ज़माने से
जुदा हैं
बचपन में मुझे बाहों के झूले
में झुलाया
हर दर्द मेरा अपने कलेजे से
लगाया
मुश्किल मेरी हर एक है पलकों
से बुहारी
मैं जान हूँ पापा की मैं हूँ
उनकी दुलारी
कितने ही बड़े ख़्वाब दिखाते
थे वो मुझको
दुनिया की बुराई से बचाते थे वो मुझको
आज़ादी से आकाश पे उड़ना भी
सिखाया
तहज़ीब की पाज़ेब से पांवों को
सजाया
फूलों की तरह रक्खा सितारों
से संवारा
काँटों पे भी चलने के हुनर
से है निखारा
कमज़ोर पे वो ज़ुल्म कभी सह
नहीं पाए
दरिया से बहे कितनों के दुःख
दर्द मिटाए
दुनिया के सभी रहते हैं
किरदार उन्हीं में
शिव उनमें समाए, बसे
अवतार उन्ही में
सागर सी है गहराई फ़लक़ उनमें
बसा है
दिल उनका मुहब्बत की सदाओं
से भरा है
रहते हैं सफ़र में कभी रुकते
ही नहीं हैं
थक कर वो कभी राह में बैठे
ही नहीं हैं
पापा को है इस वक़्त बहुत
मेरी ज़रूरत
कहते वो नहीं खुल के मगर है
ये हक़ीक़त
मैं अपनी ज़रूरत से निकल ही
नहीं पाई
पापा के लिए कुछ भी तो मैं
कर नहीं पाई
दिल उनका किसी बात से बहला
नहीं सकती
जो उन से मिला है कभी लौटा
नहीं सकती
मेरी नज़्म प्रकाशित करने के लिए बहुत शुक्रिया
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