कहानी - भूख - रचना निर्मल

 

मोबाइल की छोटी सी स्क्रीन और अनलिमिटेड डाटा के रूप में चालीस साल की रीमा के हाथ मशहूर होने का नायाब तरीका लग गया था। वो कहीं भी किसी भी जगह यानि पार्कसड़कबाज़ार,माॅलमेट्रोरेस्टरां घर के किसी कोने में खड़ी हो कर कुछ भी स्टाइल से बोलकरअपने यूट्यूब चैनल,इंस्टा या फेसबुक पर पोस्ट कर देती थी। 

बस... सिलसिला शुरू हो जाता था लाइक देखने का और कमैंट्स पर थैंक्यू कहने का । कहीं भी होउसके कान नोटिफिकेशन की टुन पर लगे रहते थे । खुद से ही कहती थी," "वाऊ,रीमा यू आर सो स्मार्ट,..कीप इट अप। तुम्हें न किसी स्टेज़ की ज़रूरत और न ही किसी प्रमोटर की..प्रमोशन विदाउट मनी"। लाइक्स,फाॅलोअर्ससब्सक्राइबर्स बढ़ रहे थे .. गिव एंड टेक ...के सहारे यानी आप मेरी पोस्ट पर कमेंट करेंगे तो हम आप की पोस्ट पर। अच्छे से जानती थी कि आधे से ज्यादा लोग पूरा वीडियो नहीं देखते ।पर उसे मतलब तो लाइक और पापुलैरिटी से ही था ।

कितनी बार पति से भी इस चक्कर में लड़ाई हो चुकी थी। पता नहीं क्यों उन्हें टू मिनट मैगी से इतनी एलर्जी थीहुं ..पेट ही तो भरना है ,मेरे हाथ के खाने की इतनी लालच क्यूँ..!! मेरी भूख तो एक पानी की बोतल और एक लाइक से ही मिट जाती है ।उन्हें तो मेरे यानि रीमा के "अप टू डेट" होने पर भी एतराज़ है।बस..वे तो बचत करो का राग अलापते हैं।”

बाकी परिवार वाले भी उसकी इन हरकतों से चिढ़ते थे क्योंकि कई काम और फोन इन सबके चक्कर में रीमा रद्द कर चुकी थी।उस दिन भी पति के आफिस से फोन लगातार आता जा रहा थाऔर रीमा उसे काटती जा रही थी।अभी- अभी तो उसने यूट्यूब पर अपनी वीडियो डाली थी अभी उसे सभी जगह शेयर करना था। रात बीते अचानक पति का ध्यान आया।" ओओ.. लेट आने के चक्कर में काॅल कर रहे होंगे। लगता है खाना बाहर ही खाकर आएँगे ,अच्छा है खाना बनाने से जान छुटी।” रीमा ने सोचा और फ़ोन लेकर बैठ गई।

अचानक घड़ी में रात के डेढ़ बजे देखकर रीमा को घबराहट हुई।अरे इतनी देर हो गई ,पतिदेव अब तक नहीं आए,अब क्या करुँ,किसे फोन करुँ..!जो नाम याद आ रहे थे वो सभी आभासी दुनिया के थे‌ ।

     ढूंढ ढाँढ कर उनके एक दोस्त का नंबर मिलाया। बहुत बार मिलाने के बाद वहाँ से आवाज़ आई, "भाभी,रवि मैक्स में एड्मिट हैकार्डिएक अरेस्ट आया है। रीमा के हाथ पांव फूल गए। मुझे बताया क्यों नहीं"?वह चिल्लाई।भाभीबहुत बार फोन मिलाया,पर आप काटती ही जा रही थीं।हम लोग तुरंत उन्हें अस्पताल ले आए ..!!”

   रीमा वहीं धम्म से सोफे पर बैठ गई। हाए ये क्या हो गया ..अब क्या करुँ किस से मदद माँगूँ । उसे कुछ नहीं सूझ रहा था ..वो खुद को बिल्कुल अकेला महसूस कर रही थी।शोहरत की भूख दीमक की तरह उसके प्यार और उसके संबंधों को खा चुकी थी।

 ओह ..मैंने फोन क्यों नहीं उठाया... ।

फ़ेस बुक की नोटिफिकेशन की टुन सीधे हथौड़े की तरह अब उसके दिल और दिमाग़ पर पड़ रही थी।

हारकर काँपते हाथों से देवर को फोन मिलाया।पता नहीं फोन उठाएगा या नहीं,उठा भी लिया तो पता नहीं क्या-क्या सुनाएगा।परवहाँ से पहली बार में फोन उठ भी गया। हैलो की आवाज़ सुनते ही रीमा की रुलाई छुट गई। "भाभीआप जल्दी आ जाइए,मैं भैया के पास ही हूँ।" कहकर फोन रख दिया था।

आँखों में आँसू लिए रीमा अपने नाज़ुक रिश्ते को संभालने निकल पड़ी।

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