शैख़ साहिब! शराब पी लीजै - विजय ‘अरुण’

 
शैख़ साहिब! शराब पी लीजै

मेरे आली जनाब पी लीजै

 

कीजिए कोई भी न इस पै सवाल

चीज़ है लाजवाब पी लीजै

 

इसमें नश्शा है और महक भी है

ये नशीला गुलाब पी लीजै

 

अब तो पीने पिलाने के दिन हैं

जोश पर है शबाब पी लीजै

 

आप को भी है पीने की ख़्वाहिश

छोड़िए सब हिजाब पी लीजै

 

आप के नाम की ‘अरुण’ साहिब

कुछ बची है शराब पी लीजै

 

विजय ‘अरुण’

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