हो रहा जो देखकर विस्मित हुए - अशोक नीरद


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हो रहा जो देखकर विस्मित हुए
जो अवांछित थे वो ही चयनित हुए

बुद्धि पथदर्शक हुई तो यह हुआ
मन की काशी से बहुत वंचित हुए

रंगमंचों का है जीवन सिलसिला
कैसे-कैसे नाट्य हैं मंचित हुए

टिप्पणी उपलब्धियों पर व्यर्थ है
कोष में सुख के कलह संचित हुए

राम जाने अब कहाँ हैं ऐसे लोग
जो समय की मार से प्रेरित हुए

सर छिपाए आचरण जाकर कहाँ
संत जब लंपट यहाँ साबित हुए

हर तरफ़ "नीरद" विरोधाभास है
यश जिन्हें मिलना था अपमानित हुए

:- अशोक नीरद 

1 टिप्पणी:

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