जीते जी पूछें नहीं, चलें निगाहें
फेर
आँख मूँदते ही मगर, तारीफों के ढेर
तारीफों के ढेर, सुनाते अद्भुत किस्से
क्या सच है - क्या झूठ, कौन पूछे ये
किस से
मृत्यु बाद सन्ताप - भला क्या सिद्ध करे जी
गर है सच्चा प्यार - व्यक्त करिए जीते जी
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वाह!! क्या खूब!!
जवाब देंहटाएंvaah kitni badi baat ek chhand me? bahut khoob.
जवाब देंहटाएंजीते जी पूछें नहीं, चलें निगाहें फेर|
जवाब देंहटाएंआँख मूँदते ही मगर, तारीफों के ढेर||
बहुत अच्छी रचना ,सटीक शब्दो के साथ
अगल बगल करता रहा, जीवन भर उत्पात |
जवाब देंहटाएंमरा पडोसी था भला, मदद किया दिन-रात ||
बहुत-बहुत बधाई नवीन जी ||
bhaut khub....
जवाब देंहटाएंयथार्थ और प्रेरक ... दोनों बातें।
जवाब देंहटाएंव्यक्त कर उद्गार मन के।
जवाब देंहटाएंसच्चाई बयाँ की है ... इस दुनिया से जाने के बाद ही व्यक्ति की अच्छाइयां नज़र आती हैं ..
जवाब देंहटाएंशास्वत सच्चाई को अभिव्यक्त करता कुण्डली छंद...
जवाब देंहटाएंसादर....
Bahut sundar . Aanandit ho gyaa hoon.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवीन भाई, सच्ची बात को बड़े ही शानदार तरीके से कहा है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
जवाब देंहटाएंchand me band kiya bahut marmik baat
जवाब देंहटाएं@मृत्यु बाद संताप - भला क्या सिद्ध करे जी|
जवाब देंहटाएंप्रेरक
कुंडली के शब्द-संयोजन में एक नवीनता झलक रही है।
जवाब देंहटाएंनायाब कुंडली के लिए बधाई, नवीन जी।
नवीन जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बात आपने कवित्त के माध्यम से व्यक्त किया है ह्रदय को स्पर्श करने वाली और एकदम सच्ची....
बहुत पहले कॉलेज की एक पत्रिका में ऐसी ही एक बात मैंने भी लिखी थी ...
करके हम को याद ज़माना अब क्यों रोये
जब था तेरे पास, रहे तुम सोये-सोये
लेकिन सच तो यह भी है कि आदमी तो सारी जिंदगी खोया रहता है अपने स्वार्थ जंजाल में..वह किसी का आंकलन तो करता ही उसकी अनुपस्थिति में है यह तो ज़माने की चाल है भैया....