बरवै गीत - प्रमोद वाजपेयी

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प्रमोद वाजपेयी


क्या फागुन की मस्ती, क्या उल्लास।
अपने घर तो सावन – बारह मास॥

बरसे मधु पर कैसे खेलें फाग।
सुलग रही बिरहा की तन में आग।
बुझे न खारे पानी से यह प्यास॥
अपने घर तो सावन बारह मास॥

पिया गये परदेस न देते धीर।
कौन हरे इस व्याकुल मन की पीर।
टूटी सब उम्मीदें हर विश्वास॥

प्रमोद वाजपेयी
9899035885

कवि ने यह बरवै-गीत एक प्रयोग के बतौर रचा है


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