14 सितंबर 2011

रूचि हो जो राजनीति में तो लड़िये चुनाव

घर-द्वार, परिवार से बड़ी न जीत हार,
स्वीकार या अस्वीकार, संस्कार निभाइए.

सोते जागते हमेशा, आबरू का ध्यान रखें,
आबरू के लिए सब कुछ ही लुटाइए.

धरती पे रहें  पाँव, खेलें न कदापि दाँव,
धूप हो या छाँव, काँव-काँव न सुनाइये.

रूचि हो जो राजनीति में तो लड़िये चुनाव,
राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइये. 



समस्या पूर्ति मंच द्वारा घनाक्षरी छन्द पर आयोजित आयोजन के दौरान लिखा था इसे.  प्रकाशित अब कर रहा हूँ.

3 टिप्‍पणियां:

  1. कल 13/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
    यशवंत जी की नई पुरानी हलचल का
    एक नायाब मोती.

    अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

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  3. बहुत सुन्दर धनाक्षरी है आदरणीय नवीन भाई जी...

    धरती पे रहें पाँव, खेलें न कदापि दाँव,
    धूप हो या छाँव, काँव-काँव न सुनाइये
    ..... वाह...

    आनंद आ गया... सादर...

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