आँखों का भी कुसूर है दिल की
ख़ता भी है
मुमकिन है इनके साथ कोई तीसरा भी है
वो हमसफ़र नहीं है फ़क़त, रहनुमा भी है
निर्भर है तेरी सोच पे क्या मानता है तू
आधा गिलास ख़ाली तो आधा भरा भी है
बर्बादियों में
हाथ किसी एक का नहीं
जितना गुनाह मेरा है उतना तेरा भी है
ऐसा नहीं
वो हो गया
सौ फ़ीसदी मेरा
कुछ कुर्बतें बढ़ीं हैं, मगर, फासला भी है
हम खुल के जी सकें न ही मर्ज़ी से मर सकें
क्या ज़िन्दगी से बढके कोई और सज़ा भी है
'मुज़्तर' तेरे फ़रेब
सभी जानता तो था
पर ये पता नहीं था कि तू बेवफ़ा भी है

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