ग़ज़ल - फूल हमीं हैं ख़ार हमीं हैं - गौरव कान्त गोला

 


फूल हमीं हैं ख़ार हमीं हैं

गुलशन का शृ्ंगार हमीं हैं

हमसे है दुनिया में रौनक

दुनिया का आधार हमीं हैं

 

प्यार मुहब्बत की राहों में

नफ़रत की दीवार हमीं हैं

 

ये जो नफ़रत फैल रही है

इसके ज़िम्मेदार हमीं हैं

 

अच्छे हैं केवल कहने को

पर सबसे बेकार हमीं हैं

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