अगर कुछ बात करनी है तो कीजै ख़स्ताहालों की
तमाशा देखिए बनती नहीं बीजों
से डालों की
हमारा मुल्क सबका था और अब
भी गाँव सबके हैं
मगर ये दिल्लियाँ कमबख़्त
हैं बस दिल्ली वालों की
हमारे ख़्वाब और वादे सभी
कुछ झूठ हैं बच्चो
वसीयत तो है नदियों की
विरासत है तो नालों की
मुसाफ़िर लोग हैं ख़ानाबदोश
आयेंगे जायेंगे
अजब भी है ग़ज़ब भी है ये दुनिया पाये वालों की

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