ग़ज़ल - लगी जो बात बुरी हँस के टाल दी मैंने - अरुण शर्मा

 


लगी जो बात बुरी हँस के टाल दी मैंने

अना जला के मुहब्बत में ढाल दी मैंने

 चली जो बात मुहब्बत में बेवफ़ाई की

वफ़ा के ज़िक्र में तेरी  मिसाल दी मैंने

 

हसीन जिस्म की क़ीमत बताने की ख़ातिर

चिता की राख हवा में उछाल दी मैंने

 

जो बात कह न सका मैं उसे कभी खुल कर

बना के तर्ज़ ग़ज़ल में वो डाल दी मैंने

 

ग़ज़ल बना के सुनाना तो इक बहाना है

लगी जो दिल में हुई थी निकाल दी मैंने

 

यूँ बैठने से अँधेरा कभी नहीं मिटता

जो हाथ ख़ाली थे उनको मशाल दी मैंने

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