नवगीत - कोयल की अमराई - राम निहोर तिवारी

 


कोयल की अमराई

कौओं के नाम

बन्धु इस व्यवस्था को

कोटिशः प्रणाम

 बरगद के गाँव और

कोटे की धूप

प्यासों के नाम लिखे

कागज पर कूप

इन्द्र धनुष उग आए

देश भर तमाम

बंधु इस व्यवस्था को

कोटिशः प्रणाम

 

नहरों के स्वागत में

नदी गई सूख

भूखी है प्यास और

प्यासी है भूख

कंचन मृग के पीछे

वनवासी राम

बंधु इस व्यवस्था को

कोटिशः प्रणाम

 

अपराजित अँधियारा

निगले आकाश

तेल- दिया बाती का

खंडित विश्वास

सूरज को डाँट रही

बड़बोली शाम

बंधु इस व्यवस्था को

कोटिशः प्रणाम

(सौजन्य - सीमा अग्रवाल)

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