આપે છે ક્યાં મૃગજળ સુધ્ધાં !
માગી લે છે ઝાકળ સુધ્ધાં.
લાખ હકીકત આપી દીધી,
આપી દીધી અટકળ સુધ્ધાં.
મૌન ભલે છે આંખો એની,
વાત કરે છે કાજળ સુધ્ધાં.
ઓળખ તારી ફૂલોને દે,
પ્રશ્ન કરે છે ઝાકળ સુધ્ધાં.
શણગારેલા પરબીડિયાં છે !
અંદર ક્યાં છે કાગળ સુધ્ધાં
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