फूलों से लदे इन बाग़ों की
और रंग बिरंगे फूलों की
हर कोई सिफ़त बतलाता है
हर कोई ख़ुशी जतलाता है
ख़ुशबू है वहाँ, रंगत
है वहाँ
और पत्तों की संगत है वहाँ
जी करता है कुछ ले जाएं
और घर को अपने महकाएं
लेकिन इन को तोड़ें कैसे
नाता इन से जोड़ें कैसे
कुछ नन्हे ख़ार वहाँ पर हैं
कुछ पहरेदार वहाँ पर हैं
ये ख़ार मुहाफ़िज़ फूलों के
कोई हाथ नहीं लगने देंगे
बस काँटों का ही ज़र्फ़ है
ये
कोई आँख नहीं उठने देंगे
बाक़ी है वजूदे-गुल इन से
हैं हिफ़्ज़ो-अमाँ के पल इन
से
हर बार मगर काँटों को यहाँ
तहक़ीर मिली और कुछ न मिला
जब जब भी ज़रा सी जुंबिश की
ताज़ीर मिली और कुछ न मिला
कोई पूछे ज़रा उन फूलों से
जिन जिन के पास न हों काँटे
नज़रों से कैसे बचते हैं
वो सहमे सहमे रहते हैं
इक दो दिन की ही बात है बस
ये फूल जो मुरझा जाएंगे
फिर सूखे हुए कुछ फूल यहाँ
आज़ुर्दा महक बिखराएंगे
छुट जाएगा यह साथ भी जब
काँटे तो फ़सुरदा होएंगे
लेकिन वो नए सिरे से फिर
कलियों का सुकूँ बन जाएंगे
और नए फूल के रहने तक
फिर हिफ़्ज़ो-अमाँ मे रखेंगे
जब ख़ार है ख़ूबी का मालिक
तो क्यों न उसे भी मान मिले
काँटों का दर्द तो जायज़ है
फिर क्यों न उन्हें सम्मान मिले
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार, 4 अक्टूबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत नज्म
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएं