आये घर पर आज हमारे दिल्ली
वाले दादाजी ।
दादाजी के भाई प्यारे दिल्ली
वाले दादाजी ।।
खाने वाली चीजें लाये , ढेरों
खेल-खिलौने भी।
भूआ के जो नन्हा - मुन्ना उसके लिए बिछौने भी,
घूम - घूम कर देखा घर को और
खुशी से फूले भी ,
दादा जी की बाँह पकड़ कर , झूले
सँग - सँग झूले भी ।
पापा को मुटियार पुकारे
दिल्ली वाले दादाजी ।।
दादाजी के भाई प्यारे…..
रोज सवेरे उठकर जल्दी मोर
चुगाते आँगन में ,
हैंड पंप से पानी भरकर रोज
नहाते आँगन में ।
दादा वाली सइकिल लेकर टहल
खेत पर आते वे ,
गाँव-गली में घूम-घूम कर
सबसे ही बतियाते वे ।
बाड़े में जा गाय दुलारे
दिल्ली वाले दादाजी ।।
दादाजी के भाई प्यारे…..
कहते ताज़ा दूध मलाई बाँध रखी
है गैया भी ,
पेड़ नीम का आँगन में है
जिसकी शीतल छैया भी।
कितना खुल्ला और बड़ा है चौक
तुम्हारा भैया जी ,
दस कदमों में नप जाता है
फ्लैट हमारा भैया जी ।
कैसी दिल्ली करे इशारे
दिल्ली वाले दादाजी ।
जाने कब पखवाड़ा बीता पता
नहीं चल पाया था ,
सच पूछो तो उनके सँग में मजा
बड़ा ही आया था ।
हुई तयारी फिर जाने की पिछली दो-दो रातों सें ,
दादी जी ने पैक किये सामान
बनाकर हाथों सें ।
नोट थमा कर चले करारे दिल्ली
वाले दादाजी ।।
दादाजी के भाई प्यारे…….
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजी हार्दिक धन्यवाद
हटाएंअति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
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