बालगीत - दिल्ली वाले दादाजी - आशा पाण्डेय ओझा 'आशा'

 


आये घर पर आज हमारे दिल्ली वाले दादाजी ।

दादाजी के भाई प्यारे दिल्ली वाले दादाजी ।।

 

खाने वाली चीजें लाये , ढेरों खेल-खिलौने भी।

भूआ के जो नन्हा - मुन्ना उसके लिए बिछौने भी,

घूम - घूम कर देखा घर को और खुशी से फूले भी ,

दादा जी की बाँह पकड़ कर , झूले

सँग - सँग झूले भी ।

पापा को मुटियार पुकारे दिल्ली वाले दादाजी ।।

दादाजी के भाई प्यारे…..

 

रोज सवेरे उठकर जल्दी मोर चुगाते आँगन में ,

हैंड पंप से पानी भरकर रोज नहाते आँगन में ।

दादा वाली सइकिल लेकर टहल खेत पर आते वे ,

गाँव-गली में घूम-घूम कर सबसे ही बतियाते वे ।

बाड़े में जा गाय दुलारे दिल्ली वाले दादाजी ।।

दादाजी के भाई प्यारे…..

 

कहते ताज़ा दूध मलाई बाँध रखी है गैया भी ,

पेड़ नीम का आँगन में है जिसकी शीतल छैया भी।

कितना खुल्ला और बड़ा है चौक तुम्हारा भैया जी ,

दस कदमों में नप जाता है फ्लैट हमारा भैया जी ।

कैसी दिल्ली करे इशारे दिल्ली वाले दादाजी ।

 

जाने कब पखवाड़ा बीता पता नहीं चल पाया था ,

सच पूछो तो उनके सँग में मजा बड़ा ही आया था ।

हुई तयारी फिर जाने की  पिछली दो-दो रातों सें ,

दादी जी ने पैक किये सामान बनाकर हाथों सें ।

नोट थमा कर चले करारे दिल्ली वाले दादाजी ।।

दादाजी के भाई प्यारे…….

4 टिप्‍पणियां:

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