सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
शायद आप सभी ने भी नोट किया होगा कि समस्या पूर्ति के दूसरे चक्र से पहले इस मंच के सहभागियों की संख्या थी 33, इस पोस्ट तथा आने वाली दो पोस्ट्स को जोड़ लें तो कुल सहभागी हो जाएँगे 40। इस आयोजन की आ चुकीं प्लस ये वाली तथा आने वाली दो पोस्ट्स के साथ टोटल पोस्ट्स होंगी 11 जिन में 7 नए सहभागी हैं - यानि पुराने 33 में से 4 ही लौट पाये...................... ख़ैर...................
आयोजन के अगले तथा मंच के 38 वें सहभागी हैं भाई सत्यनारायण सिंह जी। तो आइये पढ़ते हैं सत्यनारायण जी के दोहे।
मुँह पर ताला, मन व्यथित, नयनन अँसुअन धार
उम्मीद:
सुनते हैं, फिर आ रहा, वही मधुर मधुमास
शायद अब के पूर्ण हो, पिया मिलन की आस
आश्चर्य-विरोधाभास
नियम निराला प्रेम का, उल्टा जिसका न्याय
नैन करत अपराध हैं, मन बंधक बन जाय
सीख:
हर मज़हब हर धर्म की, यही सनातन सीख
प्रेम भाव से ही मिटे, अन्तर्मन की चीख
जन-साधारण की भावनाओं को व्यक्त करते इन सुंदर दोहों को पढ़िये, दोहाकार का उत्साह वर्धन करिए और हम तैयारी करते हैं अगली पोस्ट की।
बतौर रिवाज़ दिवाली स्पेशल पोस्ट के लिए रिमाइन्डर:-
बतौर रिवाज़ दिवाली स्पेशल पोस्ट के लिए रिमाइन्डर:-
- संभवत: अपने घर की भाषा / बोली में दोहे रचें
- दिवाली विषय केंद्र में होना चाहिये, यानि दिवाली शब्द भले ही दोहे में न आये, परंतु दोहा पढ़ कर प्रतीत होना चाहिये कि बात दिवाली की हो रही है - भाव - कथ्य आप की रुचि अनुसार
- प्रत्येक रचनाधर्मी कम से कम एक [1] और अधिक से अधिक [3] दोहे प्रस्तुत करें, मंच की अपेक्षा है कि आप अपने तमाम दोहों में से छांट कर उत्तम दोहे ही भेजें
- दोहे navincchaturvedi@gmail.com पर अपनी डिटेल, फोटो, भाषा / बोली / प्रांत का उल्लेख करते हुये 5 नवंबर तक भेजने की कृपा करें
- यदि आप को हमारा भाषा / बोलियों के सम्मान में किया जा रहा यह दूसरा प्रयास उचित लगे, तो हमारा निवेदन योग्य व्यक्तियों तक पहुंचाने की कृपा करें
!जय माँ शारदे!
चारों दोहे बेहद खूबसूरत हैं और दिए गए भावों को सटीकता से व्यक्त कर रहे हैं। बहुत बहुत बधाई सत्यनारायण जी को इन शानदार दोहों के लिए।
जवाब देंहटाएंसभी दोहे बहुत खूबसूरती से बुने गए हैं...सटीक, भाव व विषय एवं अर्थ-प्रतीति ....
जवाब देंहटाएंठेस-टीस
जवाब देंहटाएंमुँह पर ताला, मन व्यथित, नयनन अँसुअन धार
हित-चिन्तक बन कर हमें, लूट रही सरकार
********************************
हाथ जलाये होम में,अब किसको बतलायँ
राख हुए विश्वास सब,मन ही मन पछतायँ ||
ठेस-टीस
जवाब देंहटाएंमुँह पर ताला, मन व्यथित, नयनन अँसुअन धार
हित-चिन्तक बन कर हमें, लूट रही सरकार
उम्मीद:
सुनते हैं, फिर आ रहा, वही मधुर मधुमास
शायद अब के पूर्ण हो, पिया मिलन की आस
आश्चर्य-विरोधाभास
नियम निराला प्रेम का, उल्टा जिसका न्याय
नैन करत अपराध हैं, मन बंधक बन जाय
सीख:
हर मज़हब हर धर्म की, यही सनातन सीख
प्रेम भाव से ही मिटे, अन्तर्मन की चीख
कोयले में बैठी अटी वो देखो सरकार ,
भेष बदलती हर पल ,है कितनी बदकार
भाई साहब क्या बात है कम शब्दों में पूरे भाव को समेटना ,एक सरकारी व्याधि को समेटना कोई आप दोहाकारों से सीखे .
उम्मीद:
जवाब देंहटाएंसुनते हैं, फिर आ रहा, वही मधुर मधुमास
शायद अब के पूर्ण हो, पिया मिलन की आस
*********************************
'पिया मिलन की आस" में,उम्मीदें भरपूर
पढ़ कर दोहा प्यार का , चढ़ने लगा सुरूर |
आश्चर्य-विरोधाभास
जवाब देंहटाएंनियम निराला प्रेम का, उल्टा जिसका न्याय
नैन करत अपराध हैं, मन बंधक बन जाय
********************************
मन होता बेचैन क्यों , गलती करते नैन
विकट विरोधाभास है ,नटखट अटपट बैन |
सीख:
जवाब देंहटाएंहर मज़हब हर धर्म की, यही सनातन सीख
प्रेम भाव से ही मिटे, अन्तर्मन की चीख
*******************************
बस इतनी सी बात को,माने गर संसार
प्रेम मिटा देगा तुरत, जग से हाहाकार ||
sabhi dohe saarthak...seekh waala ati uttam !!saadar badhaai
जवाब देंहटाएंआज 03 - 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... चलो अपनी कुटिया जगमगाएँ .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
खुबसूरत दोहे
जवाब देंहटाएंसभी दोहे बेहतरीन
जवाब देंहटाएंआदरणीय सत्यनारायण जी
जवाब देंहटाएंसभी दोहे विषय के अनुरूप है
पढ़ कर आनंद आ गया
ठेस की अभियक्ति के साथ सुन्दर व्यंग है
उम्मीद में मधुमास का जिक्र लाजवाब है
मन बंधक बन जय ...बेहेतरिन है
बहुत ही बढ़िया सनातनी सीख
हार्दिक बधाई उम्दा दोहे के लिए
दोहे बेहतरीन है ..
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिए आभार
सुगढ़ दोहों के सृजन के लिए सत्यनारायण जी को बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसभी दोहे अपने-अपने भावों को सहजता से अभिव्यक्त कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय नवीनजी का सर्व प्रथम मै आभार प्रकट करता हूँ.
आपके सत्प्रयासों से सृजित इस साहित्यिक मंच की मैं भूरि भूरि प्रसंसा करता हूँ. आपका यह प्रयास साहित्य रसिकों कों स्वयं को समझने, परखने एवं अपने अन्दर की सुप्त साहित्यक कला व सोच को जागृत कर उसे मूर्त स्वरुप प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो रहा है साथ साथ मंच साहित्यकारों का उत्साह वर्धन एवं उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए उचित मार्गदर्शन कर रहा है.
अतएव हजारो नमन के साथ,बहुत बहुत धन्यवाद नवीनजी !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहर दोहा एक से बढ़कर एक है। उस पर 'निगम' जी की काव्यबद्ध प्रतिक्रिया मिल जाए तो समझो पारिश्रमिक मिल गया। ऎसी चर्चाओं में पाठक भी काव्य प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित करें तो 'पैसा-वसूल' प्रस्तुति मानी जायेगी। भूले-भटके आने वालों के लिए यह चर्चा काफी सुखकर होगी। साहित्यिक भूख-प्यास मिटाने यदि कभी कोई बावरा होकर ब्लॉगजगत में डोलता घूमेगा तो उसे जरूर यहाँ तृप्ति मिलेगी, विश्राम मिलेगा।
जवाब देंहटाएंआदरणीय धर्मेन्द्र सिंह जी, दोहे पढ़कर आप द्वारा दी गई प्रतिक्रिया एवं उत्साह वर्धन के लिए मैं आपका आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. श्याम गुप्त जी, आपकी अनमोल प्रतिक्रिया एवं उत्साह वर्धन के लिए मैं आपका आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. श्याम गुप्त जी, आपकी अनमोल प्रतिक्रिया एवं उत्साह वर्धन के लिए मैं आपका आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंआदरणीय अरुण कुमार निगम जी, आपके स्नेह से सचमुच अभिभूत हूँ। ऐसा ही स्नेह बनाए रखें। आदरणीय प्रतुल जी के शब्दों में 'निगम' जी की काव्यबद्ध प्रतिक्रिया मिल जाए तो समझो पारिश्रमिक मिल गया। सो आपकी काव्यबद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप अमूल्य पारिश्रमिक के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआदरणीय विरेन्द्र कुमार शर्मा जी, दोहे पढ़कर आप द्वारा दी गई प्रतिक्रिया एवं उत्साह वर्धन के लिए आपका आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंआदरणीया ऋता शेखर मधु जी, आदरणीय उमाशंकर जी, आदरणीया संगीता पुरी जी एवं आदरणीया संगीता स्वरूप जी दोहे पढ़कर आप द्वारा दी गई प्रतिक्रिया एवं उत्साह वर्धन के लिए आपका आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंआदरणीय महेंद्र वर्मा जी, आपकी अनमोल प्रतिक्रिया एवं उत्साह वर्धन के लिए मैं आपका आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रतुल प्रविष्ट जी, दोहों को पढ़कर अपनी अनमोल प्रतिक्रिया देने के लिए एवं उत्साह वर्धन के लिए मैं आपका आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंआ, मनु त्यागी जी,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर और सटीक सृजन..
जवाब देंहटाएंसभी दोहे एक से बढ़ कर एक हैं ! आ. सत्यनारायण जी को इतने सुन्दर सृजन के लिये बहुत-बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएं